सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

वो 48 मिनट


सरबजीत का परिवार एक हफ्ते बाद वाघा सीमा से भारत वापस आ गया। कुछ खुशी के तो कुछ गम के आंसू लिए ये वतन लौटे। इनके साथ सरबजीत सिंह तो नहीं था, हां उनकी यादें जरूर थी। वो यादें जो 24 अप्रैल को इस परिवार ने सरबजीत सिंह के साथ कोट लखपत जेल में बिताई थी। कोट लखपत जेल में एक बहन की अपने भाई से, एक पत्नी की अपने सुहाग से और दो बेटियां की अपने पापा से मुलाकात हुई। एक हफ्ते के लिए ये परिवार पाकिस्तान गया था। वहां सरबजीत से मिलने की इजाजत भी मिल गई। इस परिवार के लिए उस पल को शब्दों में बयां करना असंभव है। जब सरबजीत का परिवार कोट लखपत जेल पहुंचा उनकी दिल की धड़कनें बढ़ गई। कैदी सेल की तरफ बढ़ते उनके कदम कभी तेज हो रहे थे तो कभी ठिठक रहे थे। उनकी दोनों बेटियां(पूनम और स्वप्निल), पत्नी और बहन (दलबीर कौर) के लिए वो पल एक स्वप्न सरीखे था। दूर से ही दलबीर कौर ने अपने भाई को देख लिया। जैसे ये परिवार सरबजीत के पास पहुंचा, आंसूओं का सैलाब उमड़ पड़ा। सरबजीत ने सबसे पहले अपनी बेटी को पहचान लिया। उसके मुंह से पहला शब्द निकला पूनम मेरी बेटी.... और फिर एक बेटी अपने बाप से लिपट गई। लेकिन बाप बेटी के बीच सलाखें थी सो पूनम ठीक से अपने पापा के गले नहीं मिल सकी। आपको बता दें कि सरबजीत सिंह को खुले में नहीं मिलने दिया गया। वो सलाखों के पीछे ही रहा और उसका परिवार सलाखों के बाहर। सरबजीत सिंह काफी देर तक अपनी बेटी के हाथों को सहलाता रहा। इस दौरान सभी भावुक हो गए... गालों पर मोटे मोटे आंसू भरभरा गए। लेकिन तभी सरबजीत सिंह ने अपने आपको संभाला। उसने अपने आंसू रोक लिए। बेटियों को भरोसा दिलाया कि यहां तुम रोने नहीं आए हो।, हिम्मत रखो और मेरे लिए दुआएं करो। और फिर सरबजीत की बहन ने अपने भाई की कलाई पर राखी बांधी। सरबजीत ने कहा, बहन इस घड़ी में मेरे पास तुम्हे देने को कुछ भी नहीं है। इसके बाद सरबजीत ने अपने हाथों से चाय बनाई। उसने अपने परिवार वालों के लिए कोल्ड ड्रिंक मंगवाई थी। इसी दौरान सरबजीत सिंह ने अपनी बहन को बताया कि वो बेकसूर है। उसने कोई जुर्म नहीं कबूला है। सरबजीत सिंह ने एक सनसनीखेज बात बताई, उसने कहा कि कोर्ट में उसकी बेगुनाही लगभग साबित हो चुकी थी, जज उसे बेगुनाह बताने ही वाले थे। तभी पता चला कि उसकी बेगुनाही के सबूत वाली फाइल गायब हो गई है। सरबजीत ने बताया कि आज तक वो फाइल नहीं मिली है। इस दौरान सरबजीत की बहन ने ही ज्यादा बात की। वो ज्यादा समय इधर उधर की बातों में गंवाना नहीं चाहती थी, सो ज्यादातर बातें केस लेकर ही हुई। लेकिन 18 साल बाद की ये मुलाकात महज 48 मिनट में खत्म हो गई। दरअसल मुलाकात के लिए 48 मिनट का ही समय दिया गया था। सरबजीत की बेटियों ने बताया कि जिस समय उसे समय खत्म होने की जानकारी दी गई, आंखें छलछला आई। बेटी अपने पापा के पास ही रुक जाना चाहती थी, कास उसके वश में होता। वो तो ये भी चाहती थी कि अपने पापा को यहां से साथ लेकर ही घर लौटे .... हालांकि उसे 48 मिनट की मुलाकात के बाद इस परिवार ने एक बार फिर मुलाकात की अनुमति मांगी, लेकिन तब तक वीजा की अवधि खत्म हो गई थी।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्या मीरा कुमार दलित हैं?

मीरा कुमार का स्पीकर चुना जाना खुशी की बात है। लेकिन लोकसभा में जिस तरीके से नेताओं ने मीरा कुमार को धन्यवाद दिया वह कई सवाल खड़े करती है। एक एक कर सभी प्रमुख सांसद सच्चाई से भटकते नजर आए। लगभग सभी ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि आज एक दलित की बेटी लोकसभा की स्पीकर बनीं हैं। ये भारतीय लोकतंत्र के लिए गर्व की बात है। बात गर्व की जरूर है। लेकिन असली सवाल ये है कि मीरा कुमार दलित कैसे हैं ? क्या सिर्फ जाति के आधार पर किसी को दलित कहना करना जायज है। क्या सिर्फ इतना कहना काफी नहीं था कि एक महिला लोकसभा स्पीकर बनीं हैं। बात उस समय की करते हैं जब बाबू जगजीवन राम जिंदा थे। उन्हें दलितों के बीच काम करनेवाले प्रमुख नेताओं में गिना जाता है। लेकिन एक सच ये भी है कि जगजीवन राम ‘दलितों के बीच ब्रह्मण और ब्रह्मणों के बीच दलित थे”। हालांकि उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। आज के संदर्भ में दलित शब्द की नई परिभाषा गढ़नी होगी। सिर्फ कास्ट को ध्यान में रखकर दलित की परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है इसके लिए क्लास को भी ध्यान में रखना ही होगा। उन लोगों को कैसे दलित कहा जा सकता है जो फाइव स्टार लाइफस्ट...

जान बचाने की खातिर... बाढ़ में लड़ाई....

बिहार में प्रलय की स्थिति है। पूर्णियां जिले में भी बाढ़ ने विकराल रूप धर लिया है। मेरे गांव में अभी तक बाढ़ नहीं आई है लेकिन पड़ोस के गांव पानी में डूब रहे हैं। रात पापा से फोन पर बात हुई। मेरे गांव में भी लोग बाढ़ से बचने की तैयारी में जुटे हैं। एक बात जो पापा ने बताई दिल दहला गया। बच्चों की लाशें पानी में यू ही बह रही हैं। लोग उसे निकालकर जहां तहां दफना रहे हैं। गांव में आबादी वाली जगहों को छोड़ खेतों में पानी भरा है और लगातार स्तर बढ़ता ही जा रहा है। बाढ़ की इस विकराल स्थिति के बीच जान बचाने के लिए लोग आपस में लड़ने मरने को तैयार बैठे हैं। मेरे गांव के पास ही एक बांध ही जिसका जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। दूसरी तरफ के लोग पानी में डूबे हुए हैं। मेरे गांव की तरफ के लोग बांध को और भी ऊंचा करने में लगे हैं। इस काम में एक दो नहीं बल्कि एक हजार के करीब लोग अंजाम दे रहे हैं। उनके हाथों में फावड़ा लाठी डंडा है। वहीं दूसरी तरफ के लोग जोकि पानि से बेहाल हैं बांध को तोड़ने पर आमाद हैं आप महज अंदाजा भर लगा सकते हैं कि वहां किस तरह की स्थिति होगी। एक तरफ के लोग तोड़ने के लिए मौके की तलाश में ...

गंदे पत्रकार, गंदी पत्रकारिता

इस हमाम में सब नंगे हैं। पत्रकारों की जमात में नंगों की कमी नहीं है। जब भारत गुलाम था, पत्रकार सच्चे थे। वो भारत को आजादी दिलाने के लिए लिखते थे। आजादी मिल गई तो पत्रकारों का चरित्र बदलने लगा। छोटे से बड़े सभी पत्रकार कमाने के फेर में लग गए। पत्रकारिता एक व्यवसाय के रूप में उभरने लगा तो गंदगी बढ़ने लगी। स्ट्रिंगर से लेकर रिपोर्टर और संपादक तक नंगे होने लगे। हालांकि कुछ पत्रकार अब भी इमानदार बने रहे लेकिन इनकी संख्या न के बराबर ही रही। पत्रकारों को बेईमान बनने के पीछे कई कारण रहे हैं। स्ट्रिंगर और छोटे रिपोर्टर इसलिए दलाल बन गए हैं कि क्योंकि उनकी सैलरी बहुत ही कम होती है। इसमें मीडिया संस्थानों की महती भूमिका होती है। सभी टीवी चैनल या अखबार मालिकों को पता है कि स्ट्रिंगर के परिवार का पेट महज 2 हजार या 3 हजार रूपये महीना की सैलरी में भरने वाला नहीं है। स्ट्रिंगर तो गांव और ब्लॉक स्तर पर जमकर दलाली करते हैं। वहां इनका बड़ा रूतवा होता है। स्ट्रिंगर पत्रकारिता से ज्यादा दलाली और पंचायत करने में अपना बड़प्पन समझते हैं। थानों में दरोगाजी के सामने ऐसे पत्रकारों की बड़ी इज्जत होती है। इतना ही ...