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नवंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

किसके बाप की है ट्रेन ?

लालू जी रेल मंत्री नहीं रहे तो क्या हुआ, ये ट्रेन अपना ही तो है। कहीं भी वेक्यूम कर दो। ट्यूबलाइट, बल्ब खोल लो। आखिर सरकारी संपत्ति जो है। अपना हिस्सा तो लेकर रहेंगे। पटना के पास सटे बख्तियारपुर के उपद्रवी सैंकड़ों लोगों से यात्रियों से भरी ट्रेन को पहले तो रोक दिया फिर इंजन खोलकर ले उड़े। रेलवे ने लॉ एंड ऑर्डर का मामला सरकार के अधीन कहकर पल्ला झाड़ लिया। दानापुर- टाटा एक्सप्रेस के यात्री बेबस और लाचार हो गए। उपद्रवी ट्रेन को बपौती संपत्ति समझ छह किलोमीटर दूर तक ले गए। इंजन को पटरी से नहीं उतार पाए नहीं तो अपने घर ले जाते। एक तरफ तो इमानदार दरोगा के ट्रांसफर का विरोध कर जागरूकता का परिचय दिया। वहीं दूसरी तरफ नेशनल हाईवे पर जाम लगाकर और ट्रेन रोककर मूर्खता और बर्बरता का परिचय दिया। आखिर किसने दिया इन्हें ये अधिकार ? 6 किलोमीटर तक इंजन ले जाने के वक्त पुलिस कहां थी। सबको पता है अगर पुलिस चाहती तो 2 मिनट में उपद्रवियों को सबक सिखा देती। क्या इंजन लेकर भागने वाले अनपढ़ गंवार थे? भैया होंगे भी क्यों नहीं जब पढ़ाने वाले ज्यादातर शिक्षामित्र ही लुच्चे लफंगे हैं तो सीख भी तो वैसी ही देंगे। उपद

बिहार पीछे जा रहा है !

बिहार में नीतीश कुमार ने विकास की बयार बहाने की भरसक कोशिश की लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में मुख्यमंत्री की नीति तुगलकी नीति साबित हो रही है। मोहम्मद बिन तुगलत ने अपनी कई नीतियों को वापस ले लिया था लेकिन नीतीश कुमार की शिक्षा नीति अनवरत जारी है और बिहार लगातार पिछड़ता ही जा रहा है। जिन निमय कानूनों और शैक्षिक स्तर पर शिक्षामित्रों की बहाली हुई वो अब बिहार को सालों पीछे धकेल चुका है। जिस शिक्षा के बल पर कोई राज्य या राष्ट्र प्रगति की रफ्तार पकड़ता है उसी शिक्षा को बिहार की नीतीश सरकार ने बेहद हल्के अंदाज में लिया। जितने शिक्षामित्रों की बहाली हुई है उनमें से सिर्फ दस प्रतिशत योग्य हैं और इमानदारी से काम कर रहे हैं। कौन नहीं जानता कि कुछ दिनों पहले तक बिहार में मैट्रिक और इंटर में चोरी और पैरवी के बल पर नंबर बढ़ाए जाते थे। बाद में चोरी और पैरवी के इसी नंबर का इस्तेमाल कर ज्यादातर लोग शिक्षामित्र बने। जो पढ़े लिखे, योग्य और सचमुच मेहनती थे वो अपनी रोटी का जुगाड़ कर चुके थे। बहुत सारे योग्य छात्र बैंक की नौकरी या एलडीसी, यूडीसी और रेलवे में जा चुके थे। बहुत कम ऐसे योग्य छात्र बचे थे जो बेरोज