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किसके बाप की है ट्रेन ?

लालू जी रेल मंत्री नहीं रहे तो क्या हुआ, ये ट्रेन अपना ही तो है। कहीं भी वेक्यूम कर दो। ट्यूबलाइट, बल्ब खोल लो। आखिर सरकारी संपत्ति जो है। अपना हिस्सा तो लेकर रहेंगे। पटना के पास सटे बख्तियारपुर के उपद्रवी सैंकड़ों लोगों से यात्रियों से भरी ट्रेन को पहले तो रोक दिया फिर इंजन खोलकर ले उड़े। रेलवे ने लॉ एंड ऑर्डर का मामला सरकार के अधीन कहकर पल्ला झाड़ लिया। दानापुर- टाटा एक्सप्रेस के यात्री बेबस और लाचार हो गए। उपद्रवी ट्रेन को बपौती संपत्ति समझ छह किलोमीटर दूर तक ले गए। इंजन को पटरी से नहीं उतार पाए नहीं तो अपने घर ले जाते। एक तरफ तो इमानदार दरोगा के ट्रांसफर का विरोध कर जागरूकता का परिचय दिया। वहीं दूसरी तरफ नेशनल हाईवे पर जाम लगाकर और ट्रेन रोककर मूर्खता और बर्बरता का परिचय दिया। आखिर किसने दिया इन्हें ये अधिकार ? 6 किलोमीटर तक इंजन ले जाने के वक्त पुलिस कहां थी। सबको पता है अगर पुलिस चाहती तो 2 मिनट में उपद्रवियों को सबक सिखा देती। क्या इंजन लेकर भागने वाले अनपढ़ गंवार थे? भैया होंगे भी क्यों नहीं जब पढ़ाने वाले ज्यादातर शिक्षामित्र ही लुच्चे लफंगे हैं तो सीख भी तो वैसी ही देंगे। उपद

बिहार पीछे जा रहा है !

बिहार में नीतीश कुमार ने विकास की बयार बहाने की भरसक कोशिश की लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में मुख्यमंत्री की नीति तुगलकी नीति साबित हो रही है। मोहम्मद बिन तुगलत ने अपनी कई नीतियों को वापस ले लिया था लेकिन नीतीश कुमार की शिक्षा नीति अनवरत जारी है और बिहार लगातार पिछड़ता ही जा रहा है। जिन निमय कानूनों और शैक्षिक स्तर पर शिक्षामित्रों की बहाली हुई वो अब बिहार को सालों पीछे धकेल चुका है। जिस शिक्षा के बल पर कोई राज्य या राष्ट्र प्रगति की रफ्तार पकड़ता है उसी शिक्षा को बिहार की नीतीश सरकार ने बेहद हल्के अंदाज में लिया। जितने शिक्षामित्रों की बहाली हुई है उनमें से सिर्फ दस प्रतिशत योग्य हैं और इमानदारी से काम कर रहे हैं। कौन नहीं जानता कि कुछ दिनों पहले तक बिहार में मैट्रिक और इंटर में चोरी और पैरवी के बल पर नंबर बढ़ाए जाते थे। बाद में चोरी और पैरवी के इसी नंबर का इस्तेमाल कर ज्यादातर लोग शिक्षामित्र बने। जो पढ़े लिखे, योग्य और सचमुच मेहनती थे वो अपनी रोटी का जुगाड़ कर चुके थे। बहुत सारे योग्य छात्र बैंक की नौकरी या एलडीसी, यूडीसी और रेलवे में जा चुके थे। बहुत कम ऐसे योग्य छात्र बचे थे जो बेरोज

क्या बीबी ऐसे खुश होतीं हैं ?

मेरी अभी शादी नहीं हुई है लेकिन होने वाली है। कुछ लोग शादी के नाम से डराते हैं तो कुछ इसे जिंदगी का सबसे बेहतरीन पल बताते हैं। मुझे नहीं पता सच क्या है। मेरे एक दोस्त जिनकी शादी के 13 साल हो गए उन्होंने अपने अनुभव बताए। दोस्त के 13 साल के अनुभवों का सार - पतियों के लिए पत्नियों को खुश रखने के कुछ मंत्र .... इस मंत्र को फॉलो कर कोई भी अपनी पत्नी के आंखों का तारा बन सकता है --- मंत्र बिना बात के पत्नी की तारीफ करते रहो बिना गलती के सॉरी बोलते रहो तीसरा मंत्र (ये सबपर लागू नहीं होता) जितने रुपए मांगे निर्वाध रूप से देते रहो मुझे नहीं पता उपरोक्त कथन में कितनी सच्चाई है। मैं आप सभी शादीशुदा विद्वजनों से सप्रेम निवेदन करता हूं कि अपने विचार जरूर प्रेषित करें।

यमुना की दुश्मन ‘आस्था’

यमुना नदी आस्था का प्रतीक है और यही आस्था यमुना पर भारी है। किसी धर्म को निशाना बनाने की मंशा नहीं है लेकिन जो काफी दिनों से देखता आ रहा हूं उसे अब और नहीं दबा सकता। 85 नंबर की बस से आ रहा था। बस लक्ष्मीनगर से आईटीओ को जोड़ने वाली पुल से होकर गुजरती है। ये प्राइवेट बस नहीं थी। डीटीसी की लो फ्लोर बस थी। बस यमुना पुल पर एकाएक रुक गई। कोई कुछ नहीं समझ पाया। हर किसी को लगा कि बस कुछ खराबी आ गई है। मैं कंडक्टर के पास खड़ा था। कंडक्टर की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था। तभी बस का ड्राइवर नीचे उतरा और पीछे से होते हुए सीधे यमुना के किनारे पहुंचा। यूं तो पुल पर लोहे का जाल है, ये जाल बीच बीच में तोड़ दी गई है। ड्राइवर के हाथ में एक पॉलीथीन थी। उसने उसे यमुना में फेंक दिया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। मेरे मुंह से अनायास ही निकला आस्था की गंदगी। ये कोई पहली घटना नहीं है लक्ष्मीनगर और आईटीओ को जोड़ने वाली इस पुल पर दोपहर का नजारा तो कुछ और ही होता है। पुल पर छोटे छोटे बच्चे घूमते रहते हैं। लोग अपनी गाड़ी पुल पर रोकते हैं और बच्चों को कुछ रुपयों के साथ ‘आस्था’ की गंदगी पकड़ा देते हैं। वो गंदगी आस्था क

जिम्मेदारी किसकी ?

इस दुनिया में कोई घर ऐसा नहीं जहां लोग मरते नहीं हैं। आप उस क्षण को याद कीजिए जब आपके गांव में या आपके मुहल्ले में किसी की असमय मौत हो जाती है। परिजनों के चीत्कार से सारा माहौल गमगीन हो जाता है। पूरे गांव या मुहल्ले में लोग उदास हो जाते हैं। अब जरा अंदाजा लगाइए उस जगह का जहां एक के बाद एक 140 लोग तड़प तड़प कर मर गए। किसी का सुहाग उजड़ गया, किसी के सिर से बाप का साया उठ गया। चारो ओर बस चीत्कार ही चीत्कार। अब सबसे बड़ा सवाल कि 140 मौतों के लिए जिम्मेदार कौन है ? मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, अहमदाबाद की पुलिस जिसकी नाक के नीचे अवैध शराब का धंधा चल रहा था, या फिर वो लोग जिन्हें शराब की बुरी लत थी ? उन सैंकड़ों मासूमों को कौन जवाब देगा, जिसे अब कभी बाप का प्यार नही मिलेगा?

क्या मीरा कुमार दलित हैं?

मीरा कुमार का स्पीकर चुना जाना खुशी की बात है। लेकिन लोकसभा में जिस तरीके से नेताओं ने मीरा कुमार को धन्यवाद दिया वह कई सवाल खड़े करती है। एक एक कर सभी प्रमुख सांसद सच्चाई से भटकते नजर आए। लगभग सभी ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि आज एक दलित की बेटी लोकसभा की स्पीकर बनीं हैं। ये भारतीय लोकतंत्र के लिए गर्व की बात है। बात गर्व की जरूर है। लेकिन असली सवाल ये है कि मीरा कुमार दलित कैसे हैं ? क्या सिर्फ जाति के आधार पर किसी को दलित कहना करना जायज है। क्या सिर्फ इतना कहना काफी नहीं था कि एक महिला लोकसभा स्पीकर बनीं हैं। बात उस समय की करते हैं जब बाबू जगजीवन राम जिंदा थे। उन्हें दलितों के बीच काम करनेवाले प्रमुख नेताओं में गिना जाता है। लेकिन एक सच ये भी है कि जगजीवन राम ‘दलितों के बीच ब्रह्मण और ब्रह्मणों के बीच दलित थे”। हालांकि उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। आज के संदर्भ में दलित शब्द की नई परिभाषा गढ़नी होगी। सिर्फ कास्ट को ध्यान में रखकर दलित की परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है इसके लिए क्लास को भी ध्यान में रखना ही होगा। उन लोगों को कैसे दलित कहा जा सकता है जो फाइव स्टार लाइफस्ट

राहत सामग्री का बंदरबांट

यह लेख जनसत्ता(दैनिक अखबार) में प्रकाशित हो चुका है। नोएडा में श्री श्री रविशंकर ने ब्रह्मनाद का आयोजन कर एक मिसाल कायम की। कार्यक्रम का आयोजन बिहार में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए किया गया था। इस कार्यक्रम से पहले भी श्री श्री रविशंकर की ओर से बिहार में बाढ़ पीड़ितों को तमाम तरह की सहायता राशि बांटी गई। अब उनकी योजना अपना सबकुछ खो चुके लोगों को घर बनाकर देना है। रविशंकर जी की सहायता तो लोगों तक पहुंच रही है लेकिन सरकारी सहायता बड़ी मुश्किल से बाढ़ पीड़ितों की धधकती अंतड़ी तक पहुंच पा रही है। सरकारी राहत सामग्री दरअसल उन लोगों तक पहुंच रही है जो इसके असली हकदार नहीं हैं। गैर सरकारी आंकड़ों की मानें तो करीब एक लाख लोग बाढ़ की भेंट चढ़ गय़े। जो बचे उनका सबकुछ लुट चुका था। सहायता के लिए केन्द्र सरकार ने राज्य को अच्छी खासी रकम दी। लेकिन सबसे शर्मनाक बात तो ये है कि जो बाढ़ पीड़ित नहीं हैं उनके बीच भी सामग्री धड़ल्ले से बांटी जा रही है। इसके पीछे पूरा गणित फिट है। लोक सभा चुनाव आने वाला है ऐसे में छुटभैया नेता अपना जनाधार बढ़ाने के लिए अपने लोगों को राहत सामग्री पाने में पूरी मदद कर रहे