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अन्ना के साथ साजिश !

अन्ना के साथ साजिश रची गई है, गहरी साजिश। अनशन की अनुमति मिली लेकिन जेपी पार्क में सिर्फ तीन दिनों की अनुमति मिली है। केन्द्र सरकार हर वो काम कर रहे हैं जिससे अन्ना के अनशन को रोका जा सके। अब तीन दिन के लिए जेपी पार्क की अनुमति का क्या मतलब है? इसके बाद वो क्या करेंगे? क्या अब इस देश में शांतिपूर्ण विरोध की भी आजादी नहीं है। हमारे वोट से चुनकर संसद में पहुंचे लोग अचानक इतने शक्तिशाली कैसे हो गए कि उन्हें हमारा डर भी नहीं ? बात किसी पार्टी विशेष की नहीं है। कांग्रेस जाएगी तो बीजेपी आएगी। सब तो एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। हमारे पास विकल्प क्या है? हम जनलोकपाल बिल की मांग कर रहे हैं लेकिन भ्रष्टाचारियों की फौज(नेता) राजी ही नहीं हैं। अब अन्ना को अपनी मांग रखने से भी साजिश के तहत रोक रहे हैं।

चक्रव्यूह में फंस गया देश

रोम जल रहा था, नीरो बंशी बजा रहा था। आज भी हालात ऐसे ही हैं। देश में घोटालों की बाढ़ आ गई है, सरकार काला धन वापस लाने को तैयार नहीं। गरीबी, बेरोजगारी से देश का दम निकल रहा है, लेकिन सरकार क्रिकेट के पीछे पागल है। समझ नहीं आ रहा एक खेल को इतनी तवज्जो क्यों ? बिहार में तो विधानसभा का सत्र आधे समय तक ही चलाने का फैसला लिया गया है ताकि विधायकों, मंत्रियों को मैच देखने में कोई दिक्कत न हो। हमारी मानसिकता को क्या हो गया। मुंबई पुलिस वानखेड़े में खेले जाने वाले फाइनल मुकाबले वाले दिन आम अवकाश घोषित करवाने की गुहार लगा रही है। क्या ये खेल का विकृत रूप नहीं है। प्रधानमंत्री मैच देखेंगे, सोनिया जी मैच देखेंगी, पाकिस्तान को न्योता भेजा गया है। हिंदी चैनलों में क्रिकेट के अलावा कोई खबर ही नहीं है। देश के गरीबों की भूख क्रिकेट से ही मिटेगी ! देश के बीमारों का इलाज क्रिकेट से ही होगा ! क्या पाकिस्तान पर जीत से आतंकियों का खात्मा हो जाएगा! कश्मीर समस्या का समाधान हो जाएगा! सड़क पर चाय की दुकान से लेकर फाइव स्टार होटल तक में क्रिकेट का बुखार चढ़ा है। असली मुद्दों से भटकाने के लिए सरकार भी मैच को खूब

न्यूज रूम में छल !

मॉर्निंग शिफ्ट के लोग घर जाने की तैयारी में थे। 4 बजे की बुलेटिन शुरू होने में कुछ मिनट ही बचे थे। तभी Executive Producer राकेश त्रिपाठी और राजेन्द्र प्रसाद मिश्रा जी(आरपीएम) मीटिंग से सीधे न्यूज रूम में आए। उनके साथ बाबा रामदेव भी थे। दोनों मिलकर उन्हें न्यूजरूम से रूबरू करवा रहे थे। एकाएक बाबा रामदेव को देख सभी अचंभित थे। आम तौर पर किसी के आने से पहले उनकी चर्चा होती है लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। राकेश जी न्यूज रूम के लोगों से बाबा रामदेव को मिलवा रहे थे। राकेश जी ने जोश में आवाज लगाई अमर जल्दी आओ.... बाबा रामदेव को देख अमर जी दौड़ पड़े... बाबा के सामने हाथ जोड़े भाव विभोर मुद्रा में खड़े थे.. तभी आरपीएम जी बोल पड़े, बाबा ये अमर आनंद हैं लाइव इंडिया के सबसे होनहार प्रोड्यूसर। अमर जी इतने भाव विभोर थे कि उनके मुंह में शब्द जैसे अटक गए थे... एकाएक उनको ख्याल आया और बोल पड़े राकेश भैया बाबा जी के साथ एक फोटो प्लीज... फिर क्या था फोटो खींचने का सिलसिला शुरू हो गया। असिस्टेंट प्रोड्यूसर शंभू जो आम तौर पर साधु संतों को गरियाते नजर आते हैं, बाबा रामदेव के साथ फोटो खिंचवा रहे थे। कुछ

मौत पर भोज पार्ट-3

हरिद्वार से दिल्ली पहुंचे और दूसरे दिन सुबह सीमांचल एक्सप्रेस से पूर्णियां रवाना हो गए। सारे लोग साथ थे, दो सीट दूसरी बॉगी में थी। दुखी तो हम सारे ही थे, आफत हम सब पर टूटी थी लेकिन पापा तो जैसे टूट ही गए थे। वो दूसरी बॉगी में अकेले ही रहना चाहते थे। काफी मनाने के बाद वो दूसरे पैसेंजर से सीट एक्सचेंज करने को राजी हुए। दूसरे दिन हमलोग गांव पहुंचे वहां पहले से ही समाज के लोग इकट्ठा थे। मेरी 100 साल की दादी पर नजर पड़ते ही पापा फूट-फूट कर रोने लगे। घर की एक एक दीवार में मां बसी थी। हर हवा के झोंके मां की याद दिला रहे थे। हम सब फूट-फूट कर रोने लगे। परिवार समाज के लोग इस घड़ी में अपना कर्तव्य निभाते हुए सांत्वना दे रहे थे। लेकिन दुख उस वक्त हुआ जब किसी ने खाने तक को नहीं पूछा। रात हुई तो समाज के लोग अपने घर चले गए। एक तो मां का गम ऊपर से लंबी दूरी से आने के बाद की थकान। पापा समाज की प्रवृति से वाकिफ से उन्होंने घर पहुंचने से पहले हमें बता दिया था कि घर में चावल-दाल तो है लेकिन सब्जियां बाजार से खरीद लो। उम्मीद मत करना कि रात को कोई खाने को भी पूछेगा। गांव के लोगों में अब उतनी आत्मीयता नहीं र