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क्या बदलेगी तस्वीर ?

ये कलयुग है, घोर कलयुग... जो चल रहा बुराई की राह है उसका सितारा बुलंद है। जिसने पकड़ी सच्चाई और सादगी की राह उसके सितारे गर्दिश में हैं। जो बाचाल है, बदचलन है, बदतमीज है, जिसने छोटे बड़े का लिहाज नहीं किया वो चमकता है, दमकता है। ज्यादातर लोग भी उसके पीछे ही रहते हैं। हां में हां मिलाकर इस दबंग प्रजाति का पोषण करते हैं। जी हां मैं बात कर रहा हूं बिहार का जहां ये हालात आज भी हैं। समाज में उनकी हंसी उड़ती है जो पढ़े लिखे हैं और घर से बाहर नौकरी करते हैं, बड़े छोटों का लिहाज करते हैं, उटपटांग बोलने से परहेज करते हैं। पर्व त्योहार या शादी ब्याह के समारोह में अचानक सबकुछ बदल जाता है, जब कोई दबंग पहुंच जाता है। वे लोगों के आकर्षण का केन्द्र होता है। सब इज्जत करते हैं। अगर उसने दो चार मर्डर किये हों तो कहने ही क्या। एक मर्डरर अकड़ता है, उसके आगे पीछे आठ दस बेरोजगार छोरे चमचे की तरह खातिरदारी कर अपने को धन्य समझता है। भई खातिरदारी इनकी नहीं होगी तो क्या आपकी होगी। यहां रहने वाले लोगों का काम तो यही करते हैं। चाहे इंदिरा आवास हो या लाल कार्ड बनवाने की जल्दी। मर्डरर को खोजा जाता है। वही तो ब्लाक

जॉर्ज बुश पर जूतों की बरसात

(तस्वीर- सौ. बीबीसी हिन्दी) अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को उनका आखिरी इराक दौरा ताउम्र याद रहेगा। दुनिया के सबसे ताकतवर इनसान को सपने में भी गुमान न होगा कि कोई उस पर जूतों की बरसात कर देगा। 14 दिसंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश अचानक इराक पहुंच गये। इस दौरान राष्ट्रपति ने उनका भरपूर स्वागत किया। दोनों देशों के बीच सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षार भी हुए। लेकिन इस दौरान एक ऐसी घटना घटी जिसे जॉर्ज बुश जिंदगी भर नहीं भूला पाएंगे। जॉर्ज बुश इराकी प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकि के निजी ऑफिस में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। तभी अल बगदादिया न्यूज चैनल के पत्रकार मुंतजेर अल जैदी ने गालियों के साथ बुश पर जूते फेंके। हालांकि वे जूते बुश को नहीं लगे। फुर्तीले बुश ने बमुश्किल अपने आप को बचाया। जूते उनके सिर के उपर से निकल गये। ये वाकया कई सवाल खड़े करता है? क्या इराक के लोग अमेरिकी मदद से आजिज आ गये हैं? क्या अब उन्हें अमेरिकी फौजों की जरूरत नहीं है? क्या अमेरिका को अपनी फौज जल्द वापस बुला लेनी चाहिए ? जूते खाते खाते बचे बुश साहब जरा