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बिहार पीछे जा रहा है !

बिहार में नीतीश कुमार ने विकास की बयार बहाने की भरसक कोशिश की लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में मुख्यमंत्री की नीति तुगलकी नीति साबित हो रही है। मोहम्मद बिन तुगलत ने अपनी कई नीतियों को वापस ले लिया था लेकिन नीतीश कुमार की शिक्षा नीति अनवरत जारी है और बिहार लगातार पिछड़ता ही जा रहा है। जिन निमय कानूनों और शैक्षिक स्तर पर शिक्षामित्रों की बहाली हुई वो अब बिहार को सालों पीछे धकेल चुका है। जिस शिक्षा के बल पर कोई राज्य या राष्ट्र प्रगति की रफ्तार पकड़ता है उसी शिक्षा को बिहार की नीतीश सरकार ने बेहद हल्के अंदाज में लिया। जितने शिक्षामित्रों की बहाली हुई है उनमें से सिर्फ दस प्रतिशत योग्य हैं और इमानदारी से काम कर रहे हैं।
कौन नहीं जानता कि कुछ दिनों पहले तक बिहार में मैट्रिक और इंटर में चोरी और पैरवी के बल पर नंबर बढ़ाए जाते थे। बाद में चोरी और पैरवी के इसी नंबर का इस्तेमाल कर ज्यादातर लोग शिक्षामित्र बने। जो पढ़े लिखे, योग्य और सचमुच मेहनती थे वो अपनी रोटी का जुगाड़ कर चुके थे। बहुत सारे योग्य छात्र बैंक की नौकरी या एलडीसी, यूडीसी और रेलवे में जा चुके थे। बहुत कम ऐसे योग्य छात्र बचे थे जो बेरोजगार थे और बाद में शिक्षामित्र बने। हालांकि इसके बावजूद हजारों योग्य नवयुक बेरोजगार रह गय़े हैं। ये उस श्रेणी में हैं जो योग्य तो हैं लेकिन उन्हें मैट्रिक और इंटर में अच्छे प्रतिशत नहीं मिले। इसकी भी एक वजह थी पढ़ने वाले लड़के चोरी और पैरवी के भरोसे नहीं रहते थे इसलिए उन्हें अपनी मेहनत और इमानदारी पर जितना मिला उसी में खुश थे। लेकिन चोरी और पैरवी वाले छात्र शिक्षामित्र बनने के मामले में इनपर भारी पड़े। अगर शिक्षामित्रों का चयन एक प्रवेश परीक्षा से हुआ होता तो शायद ज्यादातर योग्य छात्रों को मौका मिलता। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ और बिहार शिक्षा के मामले में पिछड़ता जा रहा है। अभी कुछ दिनों से शिक्षामित्रों को जांचा परखा जा रहा वो भी सिर्फ दिखावे के तौर पर। दरअसल शिक्षामित्रों को अब योग्यता परीक्षा देनी पड़ रही है जिसमें सभी पास होते हैं। बिहार के कई स्कूलों में शिक्षामित्र अपनी दबंगई के बल पर पुराने शिक्षकों को किनारे कर चुके हैं। बिहार के एक जिले में तो सरेआम नियमों की धज्जियां उड़ाकर कई जगहों पर शिक्षामित्र ही हेडमास्टर बने रहे। जबकि नियमानुसार वरिष्ठ शिक्षक के होते शिक्षामित्र हेडमास्टर नहीं बन सकता। ये मामला है बिहार के पूर्णियां जिले का। हालांकि बाद में कुछ लोगों के विरोध और शिकायत के बाद जिला शिक्षापदाधिकारी ने ये आदेश जारी किया कि कोई भी शिक्षा मित्र हेडमास्टर नहीं बन सकता और जो हैं उन्हें तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया। लेकिन इस पूरे प्रकरण में एक अहम बात ये रही कि शिक्षामित्र कागजी प्रक्रिया के तहत हेडमास्टर बने जो कि गैरकानूनी था। अब इसका जवाब कौन देगा कि करीब छह महीने तक ये गैरकानूनी नियुक्ति कैसे वैध रही। ये तो महज एक जिले के कुछ स्कूलों का हाल है। जब कम योग्य और पैरवी और चोरी के नंबरों वाले युवक शिक्षक की भूमिका निभाएंगे तो भला उन छात्रों का क्या होगा जो इनसे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। क्यों बिहार की सरकार ने शिक्षा नीति में इतना सुस्त रवैया अपनाया। क्या ये सच्चाई विकास कुमार के तथाकथित नाम से मशहूर नीतीश कुमार के जेहन में है। अगर नहीं तो क्यों नहीं है और अगर है तो नीतीश कुमार इसे सुधारने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं। अगर सिर्फ बेरोजगारी खत्म करने के लिए शिक्षा मित्रों की बहाली की गई तो ये दुर्भाग्यपूर्ण है। बेरोजगार युवकों को दूसरे तरीके से भी रोजगार मुहैया कराया जा सकता था। इसके लिए अलग से नीति बनाई जा सकती थी। मासूमों के भविष्य के साथ ये खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है?

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