ये कलयुग है, घोर कलयुग... जो चल रहा बुराई की राह है उसका सितारा बुलंद है। जिसने पकड़ी सच्चाई और सादगी की राह उसके सितारे गर्दिश में हैं। जो बाचाल है, बदचलन है, बदतमीज है, जिसने छोटे बड़े का लिहाज नहीं किया वो चमकता है, दमकता है। ज्यादातर लोग भी उसके पीछे ही रहते हैं। हां में हां मिलाकर इस दबंग प्रजाति का पोषण करते हैं। जी हां मैं बात कर रहा हूं बिहार का जहां ये हालात आज भी हैं। समाज में उनकी हंसी उड़ती है जो पढ़े लिखे हैं और घर से बाहर नौकरी करते हैं, बड़े छोटों का लिहाज करते हैं, उटपटांग बोलने से परहेज करते हैं। पर्व त्योहार या शादी ब्याह के समारोह में अचानक सबकुछ बदल जाता है, जब कोई दबंग पहुंच जाता है। वे लोगों के आकर्षण का केन्द्र होता है। सब इज्जत करते हैं। अगर उसने दो चार मर्डर किये हों तो कहने ही क्या। एक मर्डरर अकड़ता है, उसके आगे पीछे आठ दस बेरोजगार छोरे चमचे की तरह खातिरदारी कर अपने को धन्य समझता है। भई खातिरदारी इनकी नहीं होगी तो क्या आपकी होगी। यहां रहने वाले लोगों का काम तो यही करते हैं। चाहे इंदिरा आवास हो या लाल कार्ड बनवाने की जल्दी। मर्डरर को खोजा जाता है। वही तो ब्लाक में अधिकारियों को धमकाता है। लाल कार्ड बनवाता है इंदिरा आवास दिलवाता है। ये और बात है कि इंदिरा आवास के ज्यादा पैसे तो यही खा जाते हैं। छोटी मोटी लड़ाई थाने पहुंच जाय तो यही जनाब थानेदार को दो चार हजार दिलवाकर मामला निपटाते हैं। ये तो अंदर की बात है कि उस दो चार हजार में इनकी भी हिस्सेदारी होती है। ऐसे में बताइये तो सही पूछ किसकी होगी ? लोग किसके पीछे भागेंगे ? किसकी खातिरदारी होगी? क्या आपके पास है जवाब कि कब बदलेगी तस्वीर?
मीरा कुमार का स्पीकर चुना जाना खुशी की बात है। लेकिन लोकसभा में जिस तरीके से नेताओं ने मीरा कुमार को धन्यवाद दिया वह कई सवाल खड़े करती है। एक एक कर सभी प्रमुख सांसद सच्चाई से भटकते नजर आए। लगभग सभी ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि आज एक दलित की बेटी लोकसभा की स्पीकर बनीं हैं। ये भारतीय लोकतंत्र के लिए गर्व की बात है। बात गर्व की जरूर है। लेकिन असली सवाल ये है कि मीरा कुमार दलित कैसे हैं ? क्या सिर्फ जाति के आधार पर किसी को दलित कहना करना जायज है। क्या सिर्फ इतना कहना काफी नहीं था कि एक महिला लोकसभा स्पीकर बनीं हैं। बात उस समय की करते हैं जब बाबू जगजीवन राम जिंदा थे। उन्हें दलितों के बीच काम करनेवाले प्रमुख नेताओं में गिना जाता है। लेकिन एक सच ये भी है कि जगजीवन राम ‘दलितों के बीच ब्रह्मण और ब्रह्मणों के बीच दलित थे”। हालांकि उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। आज के संदर्भ में दलित शब्द की नई परिभाषा गढ़नी होगी। सिर्फ कास्ट को ध्यान में रखकर दलित की परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है इसके लिए क्लास को भी ध्यान में रखना ही होगा। उन लोगों को कैसे दलित कहा जा सकता है जो फाइव स्टार लाइफस्ट
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