मैं किसी धर्म को क्यों मानता हूं। मैं हिंदू क्यों कहलाता हूं। जबसे होश हुआ है कभी शपथ पत्र पर हस्ताक्षर तो नहीं किया कि मैं हिंदू हूं और जीवनभर हिंदू रहूंगा। हिंदू ही क्यों मुसलमान, सिख या फिर किसी और धर्म के होने का भी तो प्रमाणपत्र नहीं है मेरे पास। हां मैं हिंदू कहलाता हूं। सिर्फ इसलिए कि मैं एक राजपूत घर में पैदा हुआ जो कि हिंदू धर्म की एक जाति है। बचपन से घरवालों ने जैसा कहा, वैसा किया। भगवान और अल्लाह में भेद करना सिखाया। अपने- पराये में भेद करना सिखाया। जो सिखाया प्यार से सीखता गया। छिपकली को हिंदू और मकरे को मुसलमान समझने लगा। छिपकली को बचाकर और मकरे को मारकर गर्व होता था। लगता था चलो आज मुसलमानों को कुछ तो नुकसान पहुंचाया। मानसिकता बनी मुसलमान गंदे होते हैं। हालांकि मेरे घर दादा के एक दोस्त आते थे अब भी आते हैं जो मुसलमान हैं। दादा उन्हें अपने भाई के समान मानते थे। हमलोगों को सिखाया गया था कि उनके पैर छुने हैं। हम छुते भी थे लेकिन उस वक्त कोई नफरत नहीं होती थी। मन में एक सवाल जरूर कौंधता था जब मुसलमान गंदे होते हैं तो मतुल दादा गंदे क्यों नहीं हैं। लेकिन वो जिस तरीके से घर में सबसे मिलते थे और सब उनकी इज्जत करते थे उससे मन में कन्फ्यूजन पैदा होता था। आखिर सच क्या है। किसका धर्म अच्छा है। खैर भेदभाव यहां भी था, मतुल दादा के अलग कप में चाय भेजी जाती थी। पता नहीं उनको इस बात का अहसास था भी या नहीं। लेकिन मेरे दादाजी इस बात के खिलाफ थे इतना जरूर पता था। वो टीचर से रिटायर्ड होकर घर पर बैठे थे। उनके मन में भेदभाव की लकीर कभी नहीं देखी थी। खैर मैं जरा दूसरी तरफ भटक गया। असली मुद्दा हिंदू होने का है। पूजा पाठ में भी मन लगा। मेरा जन्म नवरात्र के दिन यानि पहली पूजा को हुआ था। घरवाले मुझे लकी मानते थे। भगवान में मेरा भी खूब भरोसा था। जब तक घर पर रहा बिना कुछ सोचे समझे पूजा पाठ में खूब मन रमाया। मेरे यहां हर महीने सत्यनारायण भगवान की कथा का प्रचलन आज भी है। नवरात्र में नौ दिन तक पूजा होती है। घर में कलश स्थापित होता है। इस बार मां दिल्ली के अस्पताल में भर्ती थी इसलिए घर पर पूजा नहीं हो सकी। सबने यही सोचा था मां ठीक हो जाए तो अगले साल धूमधाम से पूजा करेंगे। नवरात्र के दौरान सप्तमी को दिल्ली के एम्स में मां की सांसें थम गई। मौत से सिर्फ दो घंटा पहले पता चला था कि मां को ब्रेन ट्यूमर है। इससे पहले फेफड़े की बीमारी ब्रॉन्काइटिस से पीड़ित थी और किडनी से प्रोटीन लीक हो रहा था, जिसे डॉक्टर FSGS का नाम दे रहे थे। डॉक्टर्स का कहना था कि 5 साल तक कुछ नहीं होगा लेकिन मेरी मां नहीं रही। नवरात्र में पैदा होने के कारण मैं खुद को भाग्यशाली मानता था अब नवरात्र में ही मैं सबसे दुर्भाग्यशाली बन गया। मां के बिना दुनिया उजड़ गई। पहली बार मन में सवाल उठने लगे कि भगवान होते भी हैं या नहीं। लेकिन मां की मौत के बाद जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा उससे भगवान और हिंदू धर्म दोनों से नफरत होने लगी। आखिर ऐसा क्यों हुआ फिर कभी बताऊंगा।
मीरा कुमार का स्पीकर चुना जाना खुशी की बात है। लेकिन लोकसभा में जिस तरीके से नेताओं ने मीरा कुमार को धन्यवाद दिया वह कई सवाल खड़े करती है। एक एक कर सभी प्रमुख सांसद सच्चाई से भटकते नजर आए। लगभग सभी ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि आज एक दलित की बेटी लोकसभा की स्पीकर बनीं हैं। ये भारतीय लोकतंत्र के लिए गर्व की बात है। बात गर्व की जरूर है। लेकिन असली सवाल ये है कि मीरा कुमार दलित कैसे हैं ? क्या सिर्फ जाति के आधार पर किसी को दलित कहना करना जायज है। क्या सिर्फ इतना कहना काफी नहीं था कि एक महिला लोकसभा स्पीकर बनीं हैं। बात उस समय की करते हैं जब बाबू जगजीवन राम जिंदा थे। उन्हें दलितों के बीच काम करनेवाले प्रमुख नेताओं में गिना जाता है। लेकिन एक सच ये भी है कि जगजीवन राम ‘दलितों के बीच ब्रह्मण और ब्रह्मणों के बीच दलित थे”। हालांकि उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। आज के संदर्भ में दलित शब्द की नई परिभाषा गढ़नी होगी। सिर्फ कास्ट को ध्यान में रखकर दलित की परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है इसके लिए क्लास को भी ध्यान में रखना ही होगा। उन लोगों को कैसे दलित कहा जा सकता है जो फाइव स्टार लाइफस्ट...
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