
फंस गए बेचारे धर्म गुरू आसाराम बापू। आखिर ऐसा क्या हुआ कि हजारों लोग अहमदाबाद की सड़कों पर उतर गए और आसाराम बापू हाय हाय के नारे लगाने लगे ? उनके बैनर और पोस्टरों को फाड़ दिया गया। अहमदाबाद में उनके आश्रम के बाहर हंगामा किया गया। आखिर क्यों लाखों लोगों की श्रद्धा के पात्र रहे आसाराम बापू से इतने लोग नफरत करने लगे ?
मामला इतना छोटा भी नहीं है। शांत और समृद्ध जिंदगी जीने की कला बताने वाले गुरू के आश्रम के दो बच्चों की मौत हो गई। दो परिवारों के घर का चिराग बुझ गया, लेकिन बाबा ने इसकी जिम्मेदारी लेने से साफ मना कर दिया। बच्चों के घरवालों ने आरोप लगाए कि आश्रम की लापरवाही से ही दोनों बच्चों की हत्या की गई। लेकिन आश्रम ने ये तर्क दिया था कि दोनों बच्चे रथ यात्रा देखने के लिए आश्रम से फरार हो गए थे। दिन दिन बाद दोनों बच्चों की लाश आश्रम के पीछे नदी किनारे मिली। पहली नजर में तो आश्रम की लापरवाही साफ दिखती है। बच्चों के घरवालों को सांत्वना देने के बदले उल्टे आसाराम बापू अपनी दामन बचाने में लग गए। एक सभा में उन्होंने दोहे पढ़े कि उन्हें फंसाया जा रहा है। उनके उपर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं। आखिर आसाराम बापू को ऐसी सफाई देने की जरूरत ही क्यों पड़ी। जब दो घर का चिराग बुझ चुका है तो क्या वे अपने लिए न्याय की मांग भी न करें। हद तो तब हो गई जब आसाराम बापू के गुंडों ने एक अखबार के दफ्तर में जमकर तोड़फोड़ की। इस अखबार ने बाबा के खिलाफ लिखने की जुर्रत की थी। आखिर ये कैसे बाबा हैं जो अपने खिलाफ एक आवाज नहीं सुन सकते। आखिर क्यों राजनेताओं की तरह इन्होंने अखबार के दफ्तर पर हमले करवाए। अगर हमले आसाराम बापू ने नहीं करवाए तो इन्होंने हमले की निंदा क्यों नहीं की। बुधवार 16 जुलाई को अहमदाबाद में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। लोग सड़कों पर उतर आए और आसाराम बापू के खिलाफ नारेबाजी की और उनके पोस्टर फाड़े। पूरी घटनाक्रम को देखें तो लोगों का गुस्सा जायज है। अब तो एक संत सभा ने भी पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग कर दी है। अब एक सवाल कि क्या लोगों को शांति का पाठ पढ़ाने वाले बाबा का असली चेहरा कुछ और है ?
मामला इतना छोटा भी नहीं है। शांत और समृद्ध जिंदगी जीने की कला बताने वाले गुरू के आश्रम के दो बच्चों की मौत हो गई। दो परिवारों के घर का चिराग बुझ गया, लेकिन बाबा ने इसकी जिम्मेदारी लेने से साफ मना कर दिया। बच्चों के घरवालों ने आरोप लगाए कि आश्रम की लापरवाही से ही दोनों बच्चों की हत्या की गई। लेकिन आश्रम ने ये तर्क दिया था कि दोनों बच्चे रथ यात्रा देखने के लिए आश्रम से फरार हो गए थे। दिन दिन बाद दोनों बच्चों की लाश आश्रम के पीछे नदी किनारे मिली। पहली नजर में तो आश्रम की लापरवाही साफ दिखती है। बच्चों के घरवालों को सांत्वना देने के बदले उल्टे आसाराम बापू अपनी दामन बचाने में लग गए। एक सभा में उन्होंने दोहे पढ़े कि उन्हें फंसाया जा रहा है। उनके उपर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं। आखिर आसाराम बापू को ऐसी सफाई देने की जरूरत ही क्यों पड़ी। जब दो घर का चिराग बुझ चुका है तो क्या वे अपने लिए न्याय की मांग भी न करें। हद तो तब हो गई जब आसाराम बापू के गुंडों ने एक अखबार के दफ्तर में जमकर तोड़फोड़ की। इस अखबार ने बाबा के खिलाफ लिखने की जुर्रत की थी। आखिर ये कैसे बाबा हैं जो अपने खिलाफ एक आवाज नहीं सुन सकते। आखिर क्यों राजनेताओं की तरह इन्होंने अखबार के दफ्तर पर हमले करवाए। अगर हमले आसाराम बापू ने नहीं करवाए तो इन्होंने हमले की निंदा क्यों नहीं की। बुधवार 16 जुलाई को अहमदाबाद में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। लोग सड़कों पर उतर आए और आसाराम बापू के खिलाफ नारेबाजी की और उनके पोस्टर फाड़े। पूरी घटनाक्रम को देखें तो लोगों का गुस्सा जायज है। अब तो एक संत सभा ने भी पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग कर दी है। अब एक सवाल कि क्या लोगों को शांति का पाठ पढ़ाने वाले बाबा का असली चेहरा कुछ और है ?
टिप्पणियाँ
और ये बाबा इसके पहले भी उटपटांग हरकतों
के कारण चर्चा में रहे हैं ! ये लोग भय बेचते हैं !
और जब खरीद दार मोजूद हों तो इनकी दूकान
को चलने से कोंन रोक सकता है ? और जब
दूकान दारी चल रही है तो अथाह पैसा इनके
पास नही आयेगा तो क्या आपके हमारे
पास आयेगा ?
kanchan Patwal