अंग्रेजों ने भारत पर हुकुमत कायम रखने के लिए और देशभक्तों को काबू में रखने
के लिए देशद्रोह कानून बनाया था। उस वक्त इसे सैडीशन लॉ कहा गया, यानि देशद्रोह का
कानून। लेकिन आजादी के बाद भारतीय संविधान में उसे अपना लिया गया। भारतीय
दंड संहिता के अनुच्छेद 124 A के मुताबिक अगर कोई भी
व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता है या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन
भी करता है तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सज़ा हो सकती है। ब्रिटेन ने ये कानून
अपने संविधान से हटा दिया है, लेकिन भारत के संविधान में ये कानून
आज भी मौजूद है। आखिर क्यों? मेरे हिसाब से तो गोले अंग्रेज
चले गए लेकिन काले अंग्रेज जमे हुए हैं।
मीरा कुमार का स्पीकर चुना जाना खुशी की बात है। लेकिन लोकसभा में जिस तरीके से नेताओं ने मीरा कुमार को धन्यवाद दिया वह कई सवाल खड़े करती है। एक एक कर सभी प्रमुख सांसद सच्चाई से भटकते नजर आए। लगभग सभी ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि आज एक दलित की बेटी लोकसभा की स्पीकर बनीं हैं। ये भारतीय लोकतंत्र के लिए गर्व की बात है। बात गर्व की जरूर है। लेकिन असली सवाल ये है कि मीरा कुमार दलित कैसे हैं ? क्या सिर्फ जाति के आधार पर किसी को दलित कहना करना जायज है। क्या सिर्फ इतना कहना काफी नहीं था कि एक महिला लोकसभा स्पीकर बनीं हैं। बात उस समय की करते हैं जब बाबू जगजीवन राम जिंदा थे। उन्हें दलितों के बीच काम करनेवाले प्रमुख नेताओं में गिना जाता है। लेकिन एक सच ये भी है कि जगजीवन राम ‘दलितों के बीच ब्रह्मण और ब्रह्मणों के बीच दलित थे”। हालांकि उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। आज के संदर्भ में दलित शब्द की नई परिभाषा गढ़नी होगी। सिर्फ कास्ट को ध्यान में रखकर दलित की परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है इसके लिए क्लास को भी ध्यान में रखना ही होगा। उन लोगों को कैसे दलित कहा जा सकता है जो फाइव स्टार लाइफस्ट...
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