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जनवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पीसीआर वैन किसके लिए ?

दिल्ली पुलिस का एक चेहरा देखा तो सन्न रह गया। बीते साल नवंबर में कनॉट प्लेस में था। फुटपाथ पर दुकानदारों का मजमा लगा था। दुकानदार और खरीदार में मोल तोल कर रहे थे। ठीक उसी जगह पर सड़क किनारे पुलिस की पीसीआर वैन खड़ी थी। कुछ पुलिस वाले भी दुकान पर सामान देख रहे थे। एक महिला पुलिसकर्मी भी मौजूद थीं। ठीक उसी वक्त एक दुकानदार को दो ग्राहकों ने तड़ातड़ थप्पड़ जड़ दिए। फिर देखते ही देखते तीन चार दुकानदार जमा हो गए और दोनों ग्राहकों की जमकर धुनाई शुरू कर दी। माहौल बिल्कुल फिल्मी था। स्टाइल में मारपीट, गाली- गलौज हो रही थी। रंग बिरंग की गालियां पड़ रही थीं। मैं भी सड़क पर खड़ा होकर तमाशबीन बन गया। मेरी नजर उन पुलिसवालों की तरफ गई मेरी तरह ही तमाशा देख रहे थे। मुझे लगा अब पुलिस वाले हस्तक्षेप करेंगे। दोनों पक्ष को मारपीट से रोकेंगे। लेकिन ये क्या पुलिस वाले तो निकल लिए। जो पुलिसवाले अब तक खड़े थे वो जाकर पीसीआर वैन में बैठ गए और वैन आगे बढ़ गई। मैं सन्न रह गया। ये कैसी पुलिस ?