जैसे ही जी न्यूज पर बहादुर
दामिनी के उस बहादुर दोस्त ने सच बताना शुरू किया.. दिल्ली पुलिस की चरित्र रूपी
कपड़े उतरने लगे.. पहले लगा एक दो कपड़े ही उतरेंगे.. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.. दिल्ली
पुलिस नंगी हो गई.. इतना ही नहीं केन्द्र सरकार का दुपट्टा भी सरक गया.. निर्दयी
सरकार भी निर्वस्त्र हो गई.. दामिनी और उसका दोस्त 16 दिसंबर की रात सड़क पर पड़े तड़प रहे थे..
लेकिन अब निर्लज्ज दिल्ली पुलिस और बेशर्म सरकार लोगों के बीच नंगा है.. लेकिन
इंतहा देखिए दोनों को कोई फर्क नहीं पड़ता..
जरा पूरी कहानी सुन लीजिए..
दामिनी के दोस्त ने क्या क्या बताया..
दिल्ली पुलिस का पहला कपड़ा
ऐसे उतरा..
बस डेढ़ घंटे से ज्यादा समय
तक दिल्ली की चमचमाती सड़कों दौड़ती रही.. उसमें गैंगरेप होता रहा.. दरिंदे दामिनी
की अंतरियां बाहर निकालते रहे.. दिल्ली पुलिस ने कहा, बस में सिर्फ चालीस मिनट तक
तक ये सब हुआ.. झूठी और बेशर्म दिल्ली पुलिस.. डेढ़ घंटे तक काले शीशे वाली बस को
नामर्द दिल्ली पुलिस ने क्यों नहीं रोका..
दामिनी के दोस्त ने दूसरा
कपड़ा भी उतार दिया—
दिल्ली पुलिस की दो- तीन
पीसीआर वैन पहुंची लेकिन.. वो लोग आपस में बात करते रहे कि कौन सी पीसीआर वैन
दोनों को उठाकर ले जाएगा... इस दौरान दामिनी के शरीर से खून निकलता रहा.. दोनों
कराहते रहे.. आधे घंटे बाद दोनों को उठाया गया.. अब दिल्ली पुलिस की सुनिए.. पुलिस
अधिकारी गोगिया ने बताया कि पीसीआर वैन 10.29 बजे पहुंच गई थी.. और 10.39 पर दोनों
को उठाया गया.. अरे बेशर्म दिल्ली पुलिस दस मिनट की देरी भी क्यों हुई.. इस दौरान
क्या तुम लोग भारत की लहूलुहान बेटी के मरने का इंतजार कर रहे थे.. ये दस मिनट का
जवाब क्यों नहीं देते.. तुम्हारे तो दूसरा कपड़ा भी उतर गया.. इस दौरान दोनों
पीसीआर में क्या बातें हो रही थी बताओ..
दिल्ली पुलिस का तीसरा
कपड़ा ऐसे उतरा
दामिनी के दोस्त ने बताया
कि दोनों बीच सड़क पर रात को नंगे बदन ठंड में ठिठुर रहे थे लेकिन किसी ने उनके
बदन को ढंकने की कोशिश नहीं की.. काफी देर बाद किसी ने एक चादर को फाड़कर दिया जिसमें
दामिनी को लपेटा गया.. दिल्ली पुलिस इस बारे में चुप है..
दिल्ली पुलिस का चौथा कपड़ा
ऐसे उतरा
जब दामिनी खून से लथपथ..
सड़क पर पड़ी थी.. उसकी छोटी आंत बाहर निकली थी.. उसका दोस्त जिसके शरीर को रॉड से
तोड़ दिया गया था.. जिसका हाथ बड़ी मुश्किल से काम कर रहा था.. जिसके पांव बड़ी
मुश्किल से उठ रहे थे.. जिसकी हलक से एक शब्द भी थरथरा कर निकल रहे थे.. उसने अपनी
दोस्त यानि दामिनी को उठाकर पीसीआर वैन में बिठाया.. दिल्ली पुलिस ने उठाने की
जहमत नहीं उठाई.. सिर्फ इसलिए कि शायद खून से हाथ लाल न हो जाए.. बेशर्म दिल्ली
पुलिस ने कहा कि दोनों के पीसीआर वैन के जवानों ने उठाकर वैन में बिठाया.. क्यों
उस साहसी लड़की के दोस्त को झूठा करार देने की कोशिश कर रहे हो.. पूरा हिंदुस्तान
जानता है कि वो दोस्त झूठ नहीं बोल सकता.. अब उसके पास झूठ बोलने के लिए कुछ नहीं
बचा है.. वो हीरो बनने के लिए, पब्लिसिटी के लिए अपना चेहरा दिखाने जी न्यूज पर
नहीं आया था.. वो दिल्ली पुलिस की दरिंदगी और शिथिल और जिंदा लाश वाली छवि लोगों
के सामने लाने आया था..
दिल्ली पुलिस का पांचवां कपड़ा
ऐसे उतरा
दिल्ली पुलिस ने दोनों को
सफदरजंग अस्पताल लेकर गए... वहां तुरंत इलाज करवाने की जरूरत नहीं समझी.. डॉक्टर्स
से विनती भी नहीं की.. बस सड़क से लाकर अस्पताल में पटक दिया.. जैसे तैसे अपनी
छुट्टी छुड़ाई.. ड्यूटी पूरी की.. खैर ये तो दिल्ली पुलिस के लिए रोज की बात है..
उसे क्या पता था कि ये केस इतना हाईलाइट हो जाएगा.. पूरा देश जाग जाएगा.. सफदरजंग
अस्पताल में डेढ़ घंटे बाद इलाज शुरू हो पाया.. दोनों जमीन पर पड़े रहे.. दिल्ली
पुलिस ने एक कंबल तक दिलवाने की कोशिश नहीं की.. न ही दिल्ली पुलिस ने लड़के से बात
कर उसके घर फोन करने की जरूरत समझी..
दिल्ली पुलिस का छठा कपड़ा
ऐसे उतरा
जब जेएनयू के छात्रों ने
प्रदर्शन शुरू किया तो थोड़ा दबाव बढ़ा.. सफदरजंग के बाहर प्रदर्शन हो रहे थे..
मीडिया ने भी उस दिन इस खबर को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.. वो इसलिए क्योंकि नरेन्द्र
मोदी मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे.. लेकिन जब दूसरे दिन मीडिया ने खबर को
मुहिम के तौर पर चलाया तो हड़कंप मच गया.. दिल्ली पुलिस के कान खड़े हुए.. छाया
शर्मा जैसी बड़ी अधिकारियों ने थोड़ी चुस्ती दिखाई.. बस थोड़ी चुस्ती.. दामिनी के
दोस्त को लेकर चार दिनों तक थाने में ही रखा.. और जब कुछ दरिंदे पकडे गए तो लड़के
से कहा गया कि देखो मैने कितना अच्छा काम किया.. मेरे घर पर दाल-आटा है या नहीं
इसकी चिंता नहीं.. बच्चों से कई दिनों से बात नहीं हुई.. घर का मुंह नहीं देखा..
ये बात सबको बताओ.. ये बताओ कि मैंने कितना अच्छा काम किया.. दिल्ली पुलिस दामिनी
के दोस्त के इस सनसनीखेज आरोप पर भी चुप है.. सोचिए क्या दिल्ली पुलिस हर केस में
ऐसा करती है.. सिर्फ मामला तूल पकड़ता है तो चुस्ती दिखती है..
दिल्ली पुलिस का सातवां कपड़ा
ऐसे उतरा
दिल्ली पुलिस ने अपनी पीठ
थपथपाने के चक्कर में मानवता की हदें पार कर दी.. दामिनी के दोस्त का इलाज तक नहीं
कराया.. उसके पूरे बदन पर चोट थे.. पांव की हथियां कूच दी गई थी.. लेकिन उसे चार
दिन थाने में बिठाकर रखा.. उसका इलाज नहीं किया.. आरोपियों को पकड़ने के लिए उसे
बिठाया ये तो ठीक.. लेकिन इलाज क्यों नहीं
किया.. इस पर भी दिल्ली पुलिस के पास कोई ठोस जवाब नहीं है..
यानि दिल्ली पुलिस के सारे
कपड़े उतर गए.. अब देश की जनता के हाथ में है कि इसका क्या करें...
अब सुनिये सरकार का दुपट्टा
कैसे सरका ?
गैंगरेप के दूसरे दिन जब
शीला से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर से पूछो..
बाह री शीला सरकार, शायद शीला दीक्षित सोच रही थी कि दिल्ली में गैंगरेप कोई नया
मामला तो है नहीं.. बाकी मामलों की तरह ही दब जाएगा.. लेकिन दबाव बढ़ता गया और उसी
हिसब से सरकार ने कदम उठाने शुरू किए.. प्रदर्शन बढ़ा तो गृह मंत्रालय जागा.. इलाज
में भी धीरे-धीरे तेजी लाई गई..लोगों का मूड भांपकर काम किया गया.. लोगों का प्रदर्शन
रोकने के लिए लाठी बरसाई गई.. सुशील शिंदे ने कहा कि जब सारे आरोपी पकड़े गए तो
फिर शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी क्यों.. अरे शिंदे साहब, दिल्ली पुलिस की नाकामी का
जिम्मेदार कौन है.. काले शीशे और बिना परमिट वाली बस चलने के लिए कौन जिम्मेदार
है.. इलाज के लिए पहले सिंगापुर क्यों नहीं ले जाया गया.. शायद डॉक्टर्स ने कह
दिया था कि अब दामिनी नहीं बचेगी तो अपनी छवि सुधारने के लिए सिंगापुर भेजा गया..
जबकि सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छोटी आंत के ट्रांसप्लांट का एक भी
केस सफलता पूर्वक पूरा नहीं हुआ.. इस सच को जानकर भी दामिनी को सिंगापुर क्यों ले
जाया गया.. इस सच से सरकार की दुपट्टा सरक गया.. दामिनी के इलाज का दिखावा करने
वाली दिल्ली पुलिस ने दामिनी के दोस्त का इलाज नहीं करवाया.. आज वो खुद के पैसों
पर प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवा रहा है.. अगर इलाज में थोड़ी और देरी हो जाती
तो शायद वो हमेशा के लिए अपंग रह जाता.. दिल्ली सरकार का कोई भी मंत्री उस लड़के
से नहीं मिला.. उसका हाल नहीं जाना.. सिर्फ इसलिए क्योंकि मीडिया में काफी दिनों
तक उस लड़के की चर्चा नहीं हुई..
दिल्ली सरकार ने दामिनी का
बयान लेने के लिए एसडीएम को भेजा.. दामिनी ने अपनी जान पर खेलकर.. ऑक्सीजन मास्क
निकालकर बयान दर्ज करवाया.. दामिनी का दोस्त भी उस वक्त मौजूद था.. वो लगातार
उल्टी कर रही थी.. फिर भी बयान दे रही थी.. उसने दरिंदगी की एक- एक कहानी बताई.. दूसरे
दिन एसडीएम ने कहा कि बयान ठीक से दर्ज नहीं हुआ.. ये किसी के दबाव में दिलवाया
गया था.. ये समझ से परे है कि ऐसा क्यों किया गया.. क्या दिल्ली सरकार आरोपियों को
बचाना चाहती है..
दिल्ली पुलिस, केन्द्र
सरकार, शीला सरकार सब जनता की कटघरे में है.. दिल्ली पुलिस नंगी खड़ी है तो..
केन्द्र और दिल्ली सरकार का भी दुपट्टा सरका हुआ है.. लोगों को ऐसी पुलिस और ऐसी
सरकार के खिलाफ फैसला करना ही चाहिए.. उठो..जागो.. और हिसाब कर दो.. इनके गुनाहों
का.. ताकि कोई ऐसा गुनहगार पैदा न हो जो हिंदुस्तान की बेटी को छू भी पाए..
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