मीरा कुमार का स्पीकर चुना जाना खुशी की बात है। लेकिन लोकसभा में जिस तरीके से नेताओं ने मीरा कुमार को धन्यवाद दिया वह कई सवाल खड़े करती है। एक एक कर सभी प्रमुख सांसद सच्चाई से भटकते नजर आए। लगभग सभी ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि आज एक दलित की बेटी लोकसभा की स्पीकर बनीं हैं। ये भारतीय लोकतंत्र के लिए गर्व की बात है। बात गर्व की जरूर है। लेकिन असली सवाल ये है कि मीरा कुमार दलित कैसे हैं ? क्या सिर्फ जाति के आधार पर किसी को दलित कहना करना जायज है। क्या सिर्फ इतना कहना काफी नहीं था कि एक महिला लोकसभा स्पीकर बनीं हैं। बात उस समय की करते हैं जब बाबू जगजीवन राम जिंदा थे। उन्हें दलितों के बीच काम करनेवाले प्रमुख नेताओं में गिना जाता है। लेकिन एक सच ये भी है कि जगजीवन राम ‘दलितों के बीच ब्रह्मण और ब्रह्मणों के बीच दलित थे”। हालांकि उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।
आज के संदर्भ में दलित शब्द की नई परिभाषा गढ़नी होगी। सिर्फ कास्ट को ध्यान में रखकर दलित की परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है इसके लिए क्लास को भी ध्यान में रखना ही होगा। उन लोगों को कैसे दलित कहा जा सकता है जो फाइव स्टार लाइफस्टाइल की कटेगरी में पहुंच गए हैं। हम मायावती को दलित कहते हैं, मीरा कुमार को दलित कहते हैं। आखिर क्यों। मायावती और मीरा कुमार किस तरह से दलित है। जिस वक्त जाति बनाई गई थी उस वक्त कर्म को ध्यान में रखा गया था मतलब साफ है कि क्लास को ध्यान में रखा गया था। गरीब क्लास और अमीर क्लास। बनिया क्लास और क्षत्रिय क्लास। ऋगवैदिक काल में लोगों को अपने कर्म यानि क्लास के हिसाब से जाति चुनने की पूरी छूट थी। वे जिस कर्म को अपनाते थे उसी के हिसाब से जाति इंगित होती थी। लेकिन अब समाज की सेवा करने वाले तथाकथित राजनेताओं ने जाति को वंशानुगत बना दिया है। कर्म से इसका कोई नाता रिश्ता नहीं रहा। जब दलितों को लाभ देने का मामला उठता है तो इसका फायदा ज्यादातर अमीर दलित ही उठाते हैं। बहुत कम ऐसे दलित हैं जिन्हें इसका लाभ मिलता है। इसे पढ़ने के बाद अपनी राय जरूर रखिए कि क्या आप मीरा कुमार को दलित मानते हैं? अगर हां तो कैसे?
आज के संदर्भ में दलित शब्द की नई परिभाषा गढ़नी होगी। सिर्फ कास्ट को ध्यान में रखकर दलित की परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है इसके लिए क्लास को भी ध्यान में रखना ही होगा। उन लोगों को कैसे दलित कहा जा सकता है जो फाइव स्टार लाइफस्टाइल की कटेगरी में पहुंच गए हैं। हम मायावती को दलित कहते हैं, मीरा कुमार को दलित कहते हैं। आखिर क्यों। मायावती और मीरा कुमार किस तरह से दलित है। जिस वक्त जाति बनाई गई थी उस वक्त कर्म को ध्यान में रखा गया था मतलब साफ है कि क्लास को ध्यान में रखा गया था। गरीब क्लास और अमीर क्लास। बनिया क्लास और क्षत्रिय क्लास। ऋगवैदिक काल में लोगों को अपने कर्म यानि क्लास के हिसाब से जाति चुनने की पूरी छूट थी। वे जिस कर्म को अपनाते थे उसी के हिसाब से जाति इंगित होती थी। लेकिन अब समाज की सेवा करने वाले तथाकथित राजनेताओं ने जाति को वंशानुगत बना दिया है। कर्म से इसका कोई नाता रिश्ता नहीं रहा। जब दलितों को लाभ देने का मामला उठता है तो इसका फायदा ज्यादातर अमीर दलित ही उठाते हैं। बहुत कम ऐसे दलित हैं जिन्हें इसका लाभ मिलता है। इसे पढ़ने के बाद अपनी राय जरूर रखिए कि क्या आप मीरा कुमार को दलित मानते हैं? अगर हां तो कैसे?
टिप्पणियाँ
कृपया वर्ड वेरिफिकेशन की व्यवस्था को हटा दें. इससे कोई लाभ नहीं है. यह लोगों को टिपण्णी करने से निरुत्साहित करती है.
रही बात ब्रह्मणों के कर्मकांड की तो ये सही है कि उन्होंने ने ही इसकी शुरूआत की और इसमें बदलाव भी किए। लेकिन अब हमारे सांसद क्या कर रहे हैं। क्या अब हम इमानदारी से काम नहीं कर सकते।