यमुना नदी आस्था का प्रतीक है और यही आस्था यमुना पर भारी है। किसी धर्म को निशाना बनाने की मंशा नहीं है लेकिन जो काफी दिनों से देखता आ रहा हूं उसे अब और नहीं दबा सकता। 85 नंबर की बस से आ रहा था। बस लक्ष्मीनगर से आईटीओ को जोड़ने वाली पुल से होकर गुजरती है। ये प्राइवेट बस नहीं थी। डीटीसी की लो फ्लोर बस थी। बस यमुना पुल पर एकाएक रुक गई। कोई कुछ नहीं समझ पाया। हर किसी को लगा कि बस कुछ खराबी आ गई है। मैं कंडक्टर के पास खड़ा था। कंडक्टर की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था। तभी बस का ड्राइवर नीचे उतरा और पीछे से होते हुए सीधे यमुना के किनारे पहुंचा। यूं तो पुल पर लोहे का जाल है, ये जाल बीच बीच में तोड़ दी गई है। ड्राइवर के हाथ में एक पॉलीथीन थी। उसने उसे यमुना में फेंक दिया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। मेरे मुंह से अनायास ही निकला आस्था की गंदगी।
ये कोई पहली घटना नहीं है लक्ष्मीनगर और आईटीओ को जोड़ने वाली इस पुल पर दोपहर का नजारा तो कुछ और ही होता है। पुल पर छोटे छोटे बच्चे घूमते रहते हैं। लोग अपनी गाड़ी पुल पर रोकते हैं और बच्चों को कुछ रुपयों के साथ ‘आस्था’ की गंदगी पकड़ा देते हैं। वो गंदगी आस्था के नाम पर यमुना में फेंक दी जाती है। जो बच्चों को रुपये नहीं देना चाहते वो खुद ही गंदगी यमुना में प्रवाहित करते हैं। ‘आस्था’ की गंदगी बोले तो यमुना की दुश्मन ‘आस्था’।
ये कोई पहली घटना नहीं है लक्ष्मीनगर और आईटीओ को जोड़ने वाली इस पुल पर दोपहर का नजारा तो कुछ और ही होता है। पुल पर छोटे छोटे बच्चे घूमते रहते हैं। लोग अपनी गाड़ी पुल पर रोकते हैं और बच्चों को कुछ रुपयों के साथ ‘आस्था’ की गंदगी पकड़ा देते हैं। वो गंदगी आस्था के नाम पर यमुना में फेंक दी जाती है। जो बच्चों को रुपये नहीं देना चाहते वो खुद ही गंदगी यमुना में प्रवाहित करते हैं। ‘आस्था’ की गंदगी बोले तो यमुना की दुश्मन ‘आस्था’।
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अमर आनंद