जबसे पत्रकार बना हूं... खबर तलाश रहा हूं लेकिन हर रोज मायूसी ही हाथ लगती है... कभी आमिर खान शाहरूख को नंबर दो बोल हंगामा खड़ा कर देते हैं तो कभी राखी सावंत कोई कारनामा कर जाती है.... और फिर न्यूज चैनल्स की खबर बन जाती है... लेकिन क्या ये सचमुच की खबरें हैं.... कभी मेनका गांधी से जबरन पूछा जाता है, सोनिया के अध्यक्ष पद पर दस साल पूरे करने पर आप क्या कहेंगी... मजबूरी में वो कहती है बधाई हो.. खबर बन जाती है... महज दो सेकेंड की बाइट को बार बार दुहराकर दिखाते हैं... सुर्खियां बटोरने के लिए रैंप पर मॉडलों के कपड़े सरक जाते हैं तो हम उसे सैंकड़ों बार दिखाते हैं.... क्या यही सबसे बड़ी खबर है.... मैं परेशान हूं... ये जानने को बेताब हूं कि आखिर खबर क्या है ?
मीरा कुमार का स्पीकर चुना जाना खुशी की बात है। लेकिन लोकसभा में जिस तरीके से नेताओं ने मीरा कुमार को धन्यवाद दिया वह कई सवाल खड़े करती है। एक एक कर सभी प्रमुख सांसद सच्चाई से भटकते नजर आए। लगभग सभी ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि आज एक दलित की बेटी लोकसभा की स्पीकर बनीं हैं। ये भारतीय लोकतंत्र के लिए गर्व की बात है। बात गर्व की जरूर है। लेकिन असली सवाल ये है कि मीरा कुमार दलित कैसे हैं ? क्या सिर्फ जाति के आधार पर किसी को दलित कहना करना जायज है। क्या सिर्फ इतना कहना काफी नहीं था कि एक महिला लोकसभा स्पीकर बनीं हैं। बात उस समय की करते हैं जब बाबू जगजीवन राम जिंदा थे। उन्हें दलितों के बीच काम करनेवाले प्रमुख नेताओं में गिना जाता है। लेकिन एक सच ये भी है कि जगजीवन राम ‘दलितों के बीच ब्रह्मण और ब्रह्मणों के बीच दलित थे”। हालांकि उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। आज के संदर्भ में दलित शब्द की नई परिभाषा गढ़नी होगी। सिर्फ कास्ट को ध्यान में रखकर दलित की परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है इसके लिए क्लास को भी ध्यान में रखना ही होगा। उन लोगों को कैसे दलित कहा जा सकता है जो फाइव स्टार लाइफस्ट...
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