tag:blogger.com,1999:blog-80530985909016209502024-03-21T16:18:39.255-07:00डिबियाडिबिया की रोशनी में लाखों घर रौशन होते हैं... डिबिया को जलने दें...kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.comBlogger41125tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-22993296178876215732023-03-22T11:51:00.000-07:002023-03-22T11:51:20.605-07:00 केन उपनिषद् के महत्वपूर्ण मंत्र<p>For UGC NET-JRF </p><p>ओम केनेषितं पतति प्रेषितं मन:।।</p><p>((किससे सत्ता स्फूर्ति पाकर मन जो विषयों में जाता है..))</p><p>चक्षु: श्रोतं क उ देवो युनक्ति।।</p><p>((नेत्र और कान को कौन नियुक्त करते हैं))</p><p>न तत्र चक्षुर्गच्छति, न वाग्गच्छति...।।</p><p>((न वहां आंख जा सकती है, न वाणी पहुंच सकती है))</p><p><br /></p><p>विद्धि नेदं यदिदमुपासते...।। ((कई बार ये मंत्र है))</p><p>((जिन्हें ऐसा जानकर लोग उपासना करते हैं वो ब्रह्म नहीं हैं))</p><p><br /></p><p>...नो न वेदेति वेद च।। ((ये मंत्र भी उपनिषद् में कई बार आया है))</p><p>((नहीं जानता हूं ये भी नहीं कहता।))</p><p><br /></p><p>अविज्ञातं विजानतां विज्ञातम् अविजानताम्।।</p><p>((जानने का अभिमान रखने वालों के लिए जाना हुआ नहीं है.. जिन्हें अभिमान नहीं है उनका तो जाना ही हुआ है))</p><p><br /></p><p>...अग्नि अहमस्मीत्य ब्रवीज्जातवेदा।।</p><p>((मैं ही प्रसिद्ध अग्नि हूं, मैं ही जातवेदा के नाम से प्रसिद्ध हूं।))</p><p><br /></p><p>...वायुर्वा अहमस्मीत्य ब्रवीन्मातरिश्वा वा अहमस्मीति।।</p><p>((मैं ही प्रसिद्ध वायुदेव हूं, मैं ही मातरिश्वा के नाम से प्रसिद्ध हूं।।))</p><p><br /></p><p>सा ब्रह्मेति होवाच..।।</p><p>((उमा देवी ने कहा, वे तो परब्रह्म परमात्मा हैं।))</p><p><br /></p><p>तस्यैष आदेशो यदेतद्विद्युतो व्यद्युतदा।।</p><p>उस ब्रह्म का आदेश है, यह बिजली की तरह चमकना और छिपना।।</p><p>इती न्यमीमिषद् इत्यअधिदैवतम्।।</p><p>और आंख का खुलना और बंद हो जाना। इस प्रकार यह अधिदैवतम यानि ब्रह्म का उपाख्यान है।</p>kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-73387237801368272952020-05-09T05:33:00.002-07:002020-05-09T05:33:28.053-07:00श्वास लेने का ये तरीक़ा ज़िंदगी बदल सकता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1vlfbAzfJ2W5zYwCi-KSFM8-8uw5dcTFzlPuDz1VqHFVg76Juk9wzuokjpcXnKiq7t94pDajA2AbzvudR9xik5j2k6362Yh4uqjpw8IlP0M3HmHDdwrsjU19XuXCeeVYnuIcx0FRwqTk/s1600/2A1D0F96-6987-4D92-AEB0-934F00DF18D9.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="750" data-original-width="1200" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1vlfbAzfJ2W5zYwCi-KSFM8-8uw5dcTFzlPuDz1VqHFVg76Juk9wzuokjpcXnKiq7t94pDajA2AbzvudR9xik5j2k6362Yh4uqjpw8IlP0M3HmHDdwrsjU19XuXCeeVYnuIcx0FRwqTk/s320/2A1D0F96-6987-4D92-AEB0-934F00DF18D9.jpeg" width="320" /></a></div>
<br />
ऋषि मुन्नियों को वो गुप्त ज्ञान जिसके द्वारा उन्हें ओजपूर्ण ज़िंदगी और लंबी उम्र मिलती थी। जी हाँ यौगिक डीप ब्रीदिंग आपको एक नया जीवन दे सकता है। क्या है ये यौगिक श्वसन?<br />
क्दया आपने कभी एक नवजात बच्चे को श्वास लेते हुए देखा है? वो पेट ऊपर करते हुए श्वास लेता है और पेट अंदर करते हुए श्वास बाहर निकाल देता है। यानि पहले लंग्स के लोअर लोब में श्वास भरें फिर लंग्स के ऊपरी हिस्से तक। फिर जब श्वास छोड़ें तो पहले ऊपरी हिस्से से श्वास निकालें फिर पेट अंदर करते हुए पूरा श्वास बाहर कर दें। इसी पर मैंने अपने यूट्यूब चैनल Yoga guru Kaushal Kumar Kamal पर डीटेल में यौगिक श्वसन की पूरी जानकारी दी है। इसे ज़रूर देखें और अपनी राय दें।<a href="https://youtu.be/xpXsGRwXQ94"> https://youtu.be/xpXsGRwXQ94</a><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
</div>
kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-46806632357540428272013-01-05T21:16:00.000-08:002013-01-05T21:16:19.654-08:00जी न्यूज पर दिल्ली पुलिस के कपड़े उतरे... सरकार का दुपट्टा सरका... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">जैसे ही जी न्यूज पर बहादुर
दामिनी के उस बहादुर दोस्त ने सच बताना शुरू किया.. दिल्ली पुलिस की चरित्र रूपी
कपड़े उतरने लगे.. पहले लगा एक दो कपड़े ही उतरेंगे.. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.. दिल्ली
पुलिस नंगी हो गई.. इतना ही नहीं केन्द्र सरकार का दुपट्टा भी सरक गया.. निर्दयी
सरकार भी निर्वस्त्र हो गई.. दामिनी और उसका दोस्त </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><span style="font-family: Calibri;">16</span></span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> दिसंबर की रात सड़क पर पड़े तड़प रहे थे..
लेकिन अब निर्लज्ज दिल्ली पुलिस और बेशर्म सरकार लोगों के बीच नंगा है.. लेकिन
इंतहा देखिए दोनों को कोई फर्क नहीं पड़ता.. </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">जरा पूरी कहानी सुन लीजिए..
दामिनी के दोस्त ने क्या क्या बताया.. </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<u><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली पुलिस का पहला कपड़ा
ऐसे उतरा.. </span></u><u><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></u></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">बस डेढ़ घंटे से ज्यादा समय
तक दिल्ली की चमचमाती सड़कों दौड़ती रही.. उसमें गैंगरेप होता रहा.. दरिंदे दामिनी
की अंतरियां बाहर निकालते रहे.. दिल्ली पुलिस ने कहा, बस में सिर्फ चालीस मिनट तक
तक ये सब हुआ.. झूठी और बेशर्म दिल्ली पुलिस.. डेढ़ घंटे तक काले शीशे वाली बस को
नामर्द दिल्ली पुलिस ने क्यों नहीं रोका.. </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<u><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दामिनी के दोस्त ने दूसरा
कपड़ा भी उतार दिया—</span></u><u><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></u></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली पुलिस की दो- तीन
पीसीआर वैन पहुंची लेकिन.. वो लोग आपस में बात करते रहे कि कौन सी पीसीआर वैन
दोनों को उठाकर ले जाएगा... इस दौरान दामिनी के शरीर से खून निकलता रहा.. दोनों
कराहते रहे.. आधे घंटे बाद दोनों को उठाया गया.. अब दिल्ली पुलिस की सुनिए.. पुलिस
अधिकारी गोगिया ने बताया कि पीसीआर वैन 10.29 बजे पहुंच गई थी.. और 10.39 पर दोनों
को उठाया गया.. अरे बेशर्म दिल्ली पुलिस दस मिनट की देरी भी क्यों हुई.. इस दौरान
क्या तुम लोग भारत की लहूलुहान बेटी के मरने का इंतजार कर रहे थे.. ये दस मिनट का
जवाब क्यों नहीं देते.. तुम्हारे तो दूसरा कपड़ा भी उतर गया.. इस दौरान दोनों
पीसीआर में क्या बातें हो रही थी बताओ.. </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<u><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली पुलिस का तीसरा
कपड़ा ऐसे उतरा </span></u><u><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></u></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दामिनी के दोस्त ने बताया
कि दोनों बीच सड़क पर रात को नंगे बदन ठंड में ठिठुर रहे थे लेकिन किसी ने उनके
बदन को ढंकने की कोशिश नहीं की.. काफी देर बाद किसी ने एक चादर को फाड़कर दिया जिसमें
दामिनी को लपेटा गया.. दिल्ली पुलिस इस बारे में चुप है..</span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<u><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली पुलिस का चौथा कपड़ा
ऐसे उतरा </span></u><u><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></u></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">जब दामिनी खून से लथपथ..
सड़क पर पड़ी थी.. उसकी छोटी आंत बाहर निकली थी.. उसका दोस्त जिसके शरीर को रॉड से
तोड़ दिया गया था.. जिसका हाथ बड़ी मुश्किल से काम कर रहा था.. जिसके पांव बड़ी
मुश्किल से उठ रहे थे.. जिसकी हलक से एक शब्द भी थरथरा कर निकल रहे थे.. उसने अपनी
दोस्त यानि दामिनी को उठाकर पीसीआर वैन में बिठाया.. दिल्ली पुलिस ने उठाने की
जहमत नहीं उठाई.. सिर्फ इसलिए कि शायद खून से हाथ लाल न हो जाए.. बेशर्म दिल्ली
पुलिस ने कहा कि दोनों के पीसीआर वैन के जवानों ने उठाकर वैन में बिठाया.. क्यों
उस साहसी लड़की के दोस्त को झूठा करार देने की कोशिश कर रहे हो.. पूरा हिंदुस्तान
जानता है कि वो दोस्त झूठ नहीं बोल सकता.. अब उसके पास झूठ बोलने के लिए कुछ नहीं
बचा है.. वो हीरो बनने के लिए, पब्लिसिटी के लिए अपना चेहरा दिखाने जी न्यूज पर
नहीं आया था.. वो दिल्ली पुलिस की दरिंदगी और शिथिल और जिंदा लाश वाली छवि लोगों
के सामने लाने आया था.. </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<u><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली पुलिस का पांचवां कपड़ा
ऐसे उतरा </span></u><u><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></u></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली पुलिस ने दोनों को
सफदरजंग अस्पताल लेकर गए... वहां तुरंत इलाज करवाने की जरूरत नहीं समझी.. डॉक्टर्स
से विनती भी नहीं की.. बस सड़क से लाकर अस्पताल में पटक दिया.. जैसे तैसे अपनी
छुट्टी छुड़ाई.. ड्यूटी पूरी की.. खैर ये तो दिल्ली पुलिस के लिए रोज की बात है..
उसे क्या पता था कि ये केस इतना हाईलाइट हो जाएगा.. पूरा देश जाग जाएगा.. सफदरजंग
अस्पताल में डेढ़ घंटे बाद इलाज शुरू हो पाया.. दोनों जमीन पर पड़े रहे.. दिल्ली
पुलिस ने एक कंबल तक दिलवाने की कोशिश नहीं की.. न ही दिल्ली पुलिस ने लड़के से बात
कर उसके घर फोन करने की जरूरत समझी.. </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<u><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली पुलिस का छठा कपड़ा
ऐसे उतरा </span></u><u><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></u></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">जब जेएनयू के छात्रों ने
प्रदर्शन शुरू किया तो थोड़ा दबाव बढ़ा.. सफदरजंग के बाहर प्रदर्शन हो रहे थे..
मीडिया ने भी उस दिन इस खबर को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.. वो इसलिए क्योंकि नरेन्द्र
मोदी मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे.. लेकिन जब दूसरे दिन मीडिया ने खबर को
मुहिम के तौर पर चलाया तो हड़कंप मच गया.. दिल्ली पुलिस के कान खड़े हुए.. छाया
शर्मा जैसी बड़ी अधिकारियों ने थोड़ी चुस्ती दिखाई.. बस थोड़ी चुस्ती.. दामिनी के
दोस्त को लेकर चार दिनों तक थाने में ही रखा.. और जब कुछ दरिंदे पकडे गए तो लड़के
से कहा गया कि देखो मैने कितना अच्छा काम किया.. मेरे घर पर दाल-आटा है या नहीं
इसकी चिंता नहीं.. बच्चों से कई दिनों से बात नहीं हुई.. घर का मुंह नहीं देखा..
ये बात सबको बताओ.. ये बताओ कि मैंने कितना अच्छा काम किया.. दिल्ली पुलिस दामिनी
के दोस्त के इस सनसनीखेज आरोप पर भी चुप है.. सोचिए क्या दिल्ली पुलिस हर केस में
ऐसा करती है.. सिर्फ मामला तूल पकड़ता है तो चुस्ती दिखती है.. </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<u><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली पुलिस का सातवां कपड़ा
ऐसे उतरा </span></u><u><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></u></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली पुलिस ने अपनी पीठ
थपथपाने के चक्कर में मानवता की हदें पार कर दी.. दामिनी के दोस्त का इलाज तक नहीं
कराया.. उसके पूरे बदन पर चोट थे.. पांव की हथियां कूच दी गई थी.. लेकिन उसे चार
दिन थाने में बिठाकर रखा.. उसका इलाज नहीं किया.. आरोपियों को पकड़ने के लिए उसे
बिठाया ये तो ठीक.. लेकिन<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इलाज क्यों नहीं
किया.. इस पर भी दिल्ली पुलिस के पास कोई ठोस जवाब नहीं है.. </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">यानि दिल्ली पुलिस के सारे
कपड़े उतर गए.. अब देश की जनता के हाथ में है कि इसका क्या करें... </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">अब सुनिये सरकार का दुपट्टा
कैसे सरका </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><span style="font-family: Calibri;">?<o:p></o:p></span></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">गैंगरेप के दूसरे दिन जब
शीला से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर से पूछो..
बाह री शीला सरकार, शायद शीला दीक्षित सोच रही थी कि दिल्ली में गैंगरेप कोई नया
मामला तो है नहीं.. बाकी मामलों की तरह ही दब जाएगा.. लेकिन दबाव बढ़ता गया और उसी
हिसब से सरकार ने कदम उठाने शुरू किए.. प्रदर्शन बढ़ा तो गृह मंत्रालय जागा.. इलाज
में भी धीरे-धीरे तेजी लाई गई..लोगों का मूड भांपकर काम किया गया.. लोगों का प्रदर्शन
रोकने के लिए लाठी बरसाई गई.. सुशील शिंदे ने कहा कि जब सारे आरोपी पकड़े गए तो
फिर शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी क्यों.. अरे शिंदे साहब, दिल्ली पुलिस की नाकामी का
जिम्मेदार कौन है.. काले शीशे और बिना परमिट वाली बस चलने के लिए कौन जिम्मेदार
है.. इलाज के लिए पहले सिंगापुर क्यों नहीं ले जाया गया.. शायद डॉक्टर्स ने कह
दिया था कि अब दामिनी नहीं बचेगी तो अपनी छवि सुधारने के लिए सिंगापुर भेजा गया..
जबकि सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छोटी आंत के ट्रांसप्लांट का एक भी
केस सफलता पूर्वक पूरा नहीं हुआ.. इस सच को जानकर भी दामिनी को सिंगापुर क्यों ले
जाया गया.. इस सच से सरकार की दुपट्टा सरक गया.. दामिनी के इलाज का दिखावा करने
वाली दिल्ली पुलिस ने दामिनी के दोस्त का इलाज नहीं करवाया.. आज वो खुद के पैसों
पर प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवा रहा है.. अगर इलाज में थोड़ी और देरी हो जाती
तो शायद वो हमेशा के लिए अपंग रह जाता.. दिल्ली सरकार का कोई भी मंत्री उस लड़के
से नहीं मिला.. उसका हाल नहीं जाना.. सिर्फ इसलिए क्योंकि मीडिया में काफी दिनों
तक उस लड़के की चर्चा नहीं हुई.. <span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली सरकार ने दामिनी का
बयान लेने के लिए एसडीएम को भेजा.. दामिनी ने अपनी जान पर खेलकर.. ऑक्सीजन मास्क
निकालकर बयान दर्ज करवाया.. दामिनी का दोस्त भी उस वक्त मौजूद था.. वो लगातार
उल्टी कर रही थी.. फिर भी बयान दे रही थी.. उसने दरिंदगी की एक- एक कहानी बताई.. दूसरे
दिन एसडीएम ने कहा कि बयान ठीक से दर्ज नहीं हुआ.. ये किसी के दबाव में दिलवाया
गया था.. ये समझ से परे है कि ऐसा क्यों किया गया.. क्या दिल्ली सरकार आरोपियों को
बचाना चाहती है.. </span><span style="mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दिल्ली पुलिस, केन्द्र
सरकार, शीला सरकार सब जनता की कटघरे में है.. दिल्ली पुलिस नंगी खड़ी है तो..
केन्द्र और दिल्ली सरकार का भी दुपट्टा सरका हुआ है.. लोगों को ऐसी पुलिस और ऐसी
सरकार के खिलाफ फैसला करना ही चाहिए.. उठो..जागो.. और हिसाब कर दो.. इनके गुनाहों
का.. ताकि कोई ऐसा गुनहगार पैदा न हो जो हिंदुस्तान की बेटी को छू भी पाए.. </span></div>
</div>
kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-3264659465009990902012-12-28T23:20:00.000-08:002012-12-28T23:20:31.578-08:00दामिनी को दिल्ली पुलिस ने मारा ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-theme-font: minor-fareast; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">आज गैंगरेप पीड़ित दामिनी
के लिए पूरा देश रो रहा है.. हर घर में लोग शोक मना रहे हैं.. चौक-चौराहों पर
सिर्फ दामिनी की चर्चा है.. लेकिन एक सवाल जो इन सबके बीच दब गया है.. वो ये कि
दामिनी को किसने मारा </span><span style="mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-theme-font: minor-fareast;"><span style="font-family: Calibri;">?</span></span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-theme-font: minor-fareast; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> इस सवाल का जवाब ढूंढे उससे पहले दामिनी को श्रद्धांजलि.. हम उस साहसी लड़की के शोक संतप्त परिवार के साथ
हैं.. साथ ही हमारी सहानुभूति देश के व्यवस्था की नाकामी से दरिंदों के शिकार हुए
हर दामिनी के साथ है.. </span><span style="mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-theme-font: minor-fareast;"><o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-US; mso-fareast-theme-font: minor-fareast; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">फिर
वही सवाल की दामिनी को किसने मारा</span><span style="font-family: "Calibri","sans-serif"; font-size: 11pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-US; mso-fareast-theme-font: minor-fareast; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">?</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-US; mso-fareast-theme-font: minor-fareast; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> दामिनी को दिल्ली पुलिस ने मारा.. दामिनी को सोनिया-मनमोहन सरकार ने मारा..
दामिनी को शीला सरकार ने मारा.. दामिनी मरी नहीं मार दी गई है.. दिल्ली पुलिस को
जिस काम में लगाया गया है वो काम नहीं कर पा रही है.. दिल्ली पुलिस दिल्ली के
लोगों को सुरक्षा नहीं दे पा रही है.. बहन बेटियों की इज्जत यहां महफूज नहीं है..
ये दिल्ली पुलिस दरिंदों की साथी है.. चोर-बदमाशों उच्चकों की शुभचिंतक है..
इमानदार दिल्लीवालों के लिए ये दिल्ली पुलिस नहीं है.. और इस दिल्ली पुलिस की इस
दशा के लिए सोनिया-मनमोहन की केन्द्र सरकार जिम्मेदार है.. दामिनी क मौत के बाद
उसके मां-बाप को भले ही आर्थिक मदद मिल जाए लेकिन इससे क्या उसकी बेटी वापस आ
जाएगी.. एक भाई को उसकी बहन मिल जाएगी.. क्या एक मां का अपनी बेटी को ससुराल विदा
करने का सपना पूरा हो पाएगा.. समय आ<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गया
है जब दिल्ली पुलिस कमिश्नर को बर्खास्त कर पूरी पुलिसिया व्यवस्था की ओवरमेकिंग
की जाए.. पुलिस को ये बताया जाए कि अंग्रेजों का जमाना गया जब हक के लिए आवाज
उठाने वालों पर डंडे बरसाए जाते थे.. जब पुलिस का मतलब सिर्फ पुलिस का डर नहीं
होना चाहिए.. सिर्फ बदमाशों को पुलिस से डरना चाहिए.. लेकिन होता क्या है.. कभी
किसी गरीब लड़की से रेप होता है या बदतमीजी होती है तो जरा पुलिस स्टेशन का हाल
देखिए.. पुलिस डरा धमका कर केस दर्ज करने से मना कर देती है.. दामिनी का मामला भी
दब जाता अगर लोग सड़कों पर नहीं आते.. अगर मीडिया इस कदर मुहिम न चला रहा होता.. याद
कीजिए गैंगरेप के दूसरे दिन शीला दीक्षित से गैंगरेप पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने
पुलिस कमिश्नर की तरफ इशारा कर बोला इनसे पूछिए मैं क्यों बोलूं.. वाह री महिला मुख्यमंत्री..
आपको जरा भी शर्म न आई.. जरा भी लज्जा न आई... उस पीड़ित के लिए दो शब्द कहने को
आपके पास शब्द नहीं थे.. जब मामला तूल पकड़ने लगा तो शीला के बोल ही बदल गए.. लगा
एक भी वोट कम न हो जाए.. तो लगी गृह मंत्रालय को कोसने.. दिखाने लगी झूठ-मूठ की
हमदर्दी.. नेताओं का घिनौना चेहरा सामने आया.. बेशर्म गृह मंत्री ने तो यहां तक कह
दिया कि जब हमने प्रदर्शनकारियों की सारी मांगे मान ली तो फिर शांतिपूर्ण प्रदर्शन
भी क्यों किया जाए.. अरे बेशर्म शिंदे जी आपने कौन सी मांगें मान ली.. आपकी बेटी
से गैंगरेप होता तो क्या आज वो दरिंदे जिंदा होते.. अब जरा प्रधानमंत्री की बात
जान लीजिए.. प्रधानमंत्री जी ने देश को संबोधित किया.. भाषण के अंत में बोल गए </span><span style="font-family: "Calibri","sans-serif"; font-size: 11pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-US; mso-fareast-theme-font: minor-fareast; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">‘</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-US; mso-fareast-theme-font: minor-fareast; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">ठीक है</span><span style="font-family: "Calibri","sans-serif"; font-size: 11pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-US; mso-fareast-theme-font: minor-fareast; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">’</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 11pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-US; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-fareast-language: EN-US; mso-fareast-theme-font: minor-fareast; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">.. ऐसा
लगा जैसे देश को बेवकूफ बनाकर सोनिया को कह रहे हों कि ठीक है मैंने तो लोगों को
मूर्ख बना दिया.. वो भाषण टीवी चैनलों पर बिना एडिट के दिखाया गया.. अब सोनिया जी
का हाल सुन लीजिए.. महिला होने के बाद भी लड़की से तब तक कोई हमदर्दी नहीं दिखी जब
तक कि लोगों ने प्रदर्शन नहीं किया.. वाह री इटली की गोरी मैम.. हिंदुस्तान की
बेटी से रेप हुआ तुम्हें क्या.. अब देखिए राष्ट्रपति जी के बेटे का हाल.. उन्होंने
बयान दे दिया कि रात को डिस्को जाने वाली लड़कियां प्रदर्शन कर रही हैं.. ये
प्रदर्शन तो फैशन बन गया है.. अरे महाशय आपकी बहन से रेप हुआ होता तो पता चलता
प्रदर्शनकारी फैशन कर रहे हैं या ये वाजिब गुस्सा है.. दामिनी को अपना बहन मान लो
दर्द पता चल जाएगा... इस पूरे प्रकरण में राष्ट्रपति महोदय की चुप्पी भी समझ<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>से परे रहा.. वो महामहिम हैं इसलिए उन पर
ज्यादा सवाल नहीं उठा सकता.. वैसे भी राष्ट्रपति महोदय तो अपने मंत्रिमंडल की सलाह
पर काम करते हैं.. ये संविधान कहता है.. वैसे राष्ट्रपति महोदय को आगे आकर एक
अध्यादेश तो लाना ही चाहिए था.. ऐसे दरिंदों को मौत देने वाला अध्यादेश लेकिन ये
भी नहीं हुआ.. अब तो प्रदर्शन पर भी रोक है.. दस दस मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए
हैं.. अरे तुम्हारे बाप से पैसे से बना है क्या मेट्रो.. जो जब मन में आए बंद कर
देते हो.. अरे शर्म करो देश को लूटने वाले नेताओं ये सोचो की तुम्हारी बेटी के साथ
गैंगरेप हुआ है.. तभी तुम इस देश की जनता के हित की बात सोचोगे.. वर्ना न्यूज
चैनलों का क्या.. आज दिखा रहा है.. प्रदर्शन खत्म होते ही खबर बदल जाएगी.. सिर्फ
दामिनी के दरिंदों को सजा दिलाने से कुछ नहीं होगा.. ऐसी व्यवस्था करो... सुरक्षा
के ऐसे इंतजाम करो कि देश की एक भी बेटी दामिनी न बन सके.. </span></div>
kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-11114678131060932072012-09-11T05:19:00.001-07:002012-09-11T05:19:46.287-07:00क्या असीम का 'देशद्रोह' वाकई देशद्रोह है?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBRozjO40FMYYz9NnAHRrM7ypGv1LdSWu3sLHEpGkHon8D83qd_tKOnMmhysvN3Gymcrl8DibOzKVN2e6c2JRHChM5mC84zwxlbNw3Kb41_dwl2WKsyrFTj2CWzBTX29xo8F4ZkqeiCDU/s1600/aseem_trivedi.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBRozjO40FMYYz9NnAHRrM7ypGv1LdSWu3sLHEpGkHon8D83qd_tKOnMmhysvN3Gymcrl8DibOzKVN2e6c2JRHChM5mC84zwxlbNw3Kb41_dwl2WKsyrFTj2CWzBTX29xo8F4ZkqeiCDU/s320/aseem_trivedi.jpg" width="320" /></a></div>
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">अंग्रेजों ने भारत पर हुकुमत कायम रखने के लिए और देशभक्तों को काबू में रखने
के लिए देशद्रोह कानून बनाया था। उस वक्त इसे सैडीशन लॉ कहा गया, यानि देशद्रोह का
कानून। लेकिन आजादी के बाद भारतीय संविधान में उसे अपना लिया गया। </span><span lang="HI" style="color: #333333; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">भारतीय
दंड संहिता के अनुच्छेद 124 </span><span style="color: #333333; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 18pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">A <span lang="HI">के मुताबिक अगर कोई भी
व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता है या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन
भी करता है तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सज़ा हो सकती है। ब्रिटेन ने ये कानून
अपने संविधान से हटा दिया है</span>, <span lang="HI">लेकिन भारत के संविधान में ये कानून
आज भी मौजूद है। आखिर क्यों</span>?<span lang="HI"> मेरे हिसाब से तो गोले अंग्रेज
चले गए लेकिन काले अंग्रेज जमे हुए हैं। <o:p></o:p></span></span><br />
</div>
kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-54603293061034304862011-08-12T14:38:00.000-07:002011-08-12T14:46:26.576-07:00अन्ना के साथ साजिश !<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-C5eOpNv4XHke2JixtSnSpdEmXswMJt5CYsttrhD7phe_9kdl4Q2C9T8d6_8GQYJlw4_QzjUunAdE6yRTp89cvjbIcE-e_hThWO1jZXErD6UreuxI-9xRVW4Nwwe2qL4vFGU8EyWMMdw/s1600/anna.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 304px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-C5eOpNv4XHke2JixtSnSpdEmXswMJt5CYsttrhD7phe_9kdl4Q2C9T8d6_8GQYJlw4_QzjUunAdE6yRTp89cvjbIcE-e_hThWO1jZXErD6UreuxI-9xRVW4Nwwe2qL4vFGU8EyWMMdw/s320/anna.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5640089017104059666" /></a>
<br />अन्ना के साथ साजिश रची गई है, गहरी साजिश। अनशन की अनुमति मिली लेकिन जेपी पार्क में सिर्फ तीन दिनों की अनुमति मिली है। केन्द्र सरकार हर वो काम कर रहे हैं जिससे अन्ना के अनशन को रोका जा सके। अब तीन दिन के लिए जेपी पार्क की अनुमति का क्या मतलब है? इसके बाद वो क्या करेंगे? क्या अब इस देश में शांतिपूर्ण विरोध की भी आजादी नहीं है। हमारे वोट से चुनकर संसद में पहुंचे लोग अचानक इतने शक्तिशाली कैसे हो गए कि उन्हें हमारा डर भी नहीं ? बात किसी पार्टी विशेष की नहीं है। कांग्रेस जाएगी तो बीजेपी आएगी। सब तो एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। हमारे पास विकल्प क्या है? हम जनलोकपाल बिल की मांग कर रहे हैं लेकिन भ्रष्टाचारियों की फौज(नेता) राजी ही नहीं हैं। अब अन्ना को अपनी मांग रखने से भी साजिश के तहत रोक रहे हैं।kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-31406727164556104962011-03-29T02:16:00.001-07:002011-03-29T02:24:45.663-07:00चक्रव्यूह में फंस गया देश<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_pkGWJSjKbm4Glg4_BD06qHeHOLwyOOWWzmsENMBdBEkMGRQo9wsygoOAkRhitXvi0v7r6YBo6Vpi2xtlPTmMOXvi6LQalir9dm987eZMILyhFhlVaahu-1X_OkaMpZIkgz1odHQybUk/s1600/CRICKET.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 237px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_pkGWJSjKbm4Glg4_BD06qHeHOLwyOOWWzmsENMBdBEkMGRQo9wsygoOAkRhitXvi0v7r6YBo6Vpi2xtlPTmMOXvi6LQalir9dm987eZMILyhFhlVaahu-1X_OkaMpZIkgz1odHQybUk/s320/CRICKET.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5589428483760454962" /></a><br />रोम जल रहा था, नीरो बंशी बजा रहा था। आज भी हालात ऐसे ही हैं। देश में घोटालों की बाढ़ आ गई है, सरकार काला धन वापस लाने को तैयार नहीं। गरीबी, बेरोजगारी से देश का दम निकल रहा है, लेकिन सरकार क्रिकेट के पीछे पागल है। समझ नहीं आ रहा एक खेल को इतनी तवज्जो क्यों ? बिहार में तो विधानसभा का सत्र आधे समय तक ही चलाने का फैसला लिया गया है ताकि विधायकों, मंत्रियों को मैच देखने में कोई दिक्कत न हो। हमारी मानसिकता को क्या हो गया। मुंबई पुलिस वानखेड़े में खेले जाने वाले फाइनल मुकाबले वाले दिन आम अवकाश घोषित करवाने की गुहार लगा रही है। क्या ये खेल का विकृत रूप नहीं है। प्रधानमंत्री मैच देखेंगे, सोनिया जी मैच देखेंगी, पाकिस्तान को न्योता भेजा गया है। हिंदी चैनलों में क्रिकेट के अलावा कोई खबर ही नहीं है। देश के गरीबों की भूख क्रिकेट से ही मिटेगी ! देश के बीमारों का इलाज क्रिकेट से ही होगा ! क्या पाकिस्तान पर जीत से आतंकियों का खात्मा हो जाएगा! कश्मीर समस्या का समाधान हो जाएगा! सड़क पर चाय की दुकान से लेकर फाइव स्टार होटल तक में क्रिकेट का बुखार चढ़ा है। असली मुद्दों से भटकाने के लिए सरकार भी मैच को खूब प्रमोट कर रही है। आम लोगों का दर्द कोई देखने वाला नहीं है। लोगों के दिमाग को इस कदर तैयार कर दिया गया है कि दर्द से तड़पता मरीज भी दवा के बदले मैच का स्कोर पूछ बैठे। धन्य हैं हम... धन्य है हमार सरकार।kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-4342180329513827342011-02-19T08:12:00.000-08:002011-02-19T19:12:18.035-08:00न्यूज रूम में छल !<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjusO9LaK9vYXA0RDXNX6y3W1_bCTg0Dgi2pp9aGdc4cqWffrCQJeBrdzCCly5Mv85IApvunSa7yQZjhgI8B4f7-y5R4FJp7PzYb5wsFhyYDJowwyqCzKSZdydrOGKEFBwJMVkzQZPVOQk/s1600/baba+ramdev.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjusO9LaK9vYXA0RDXNX6y3W1_bCTg0Dgi2pp9aGdc4cqWffrCQJeBrdzCCly5Mv85IApvunSa7yQZjhgI8B4f7-y5R4FJp7PzYb5wsFhyYDJowwyqCzKSZdydrOGKEFBwJMVkzQZPVOQk/s320/baba+ramdev.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5575434635219600146" /></a><br />मॉर्निंग शिफ्ट के लोग घर जाने की तैयारी में थे। 4 बजे की बुलेटिन शुरू होने में कुछ मिनट ही बचे थे। तभी Executive Producer राकेश त्रिपाठी और राजेन्द्र प्रसाद मिश्रा जी(आरपीएम) मीटिंग से सीधे न्यूज रूम में आए। उनके साथ बाबा रामदेव भी थे। दोनों मिलकर उन्हें न्यूजरूम से रूबरू करवा रहे थे। एकाएक बाबा रामदेव को देख सभी अचंभित थे। आम तौर पर किसी के आने से पहले उनकी चर्चा होती है लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। राकेश जी न्यूज रूम के लोगों से बाबा रामदेव को मिलवा रहे थे। राकेश जी ने जोश में आवाज लगाई अमर जल्दी आओ.... बाबा रामदेव को देख अमर जी दौड़ पड़े... बाबा के सामने हाथ जोड़े भाव विभोर मुद्रा में खड़े थे.. तभी आरपीएम जी बोल पड़े, बाबा ये अमर आनंद हैं लाइव इंडिया के सबसे होनहार प्रोड्यूसर। अमर जी इतने भाव विभोर थे कि उनके मुंह में शब्द जैसे अटक गए थे... एकाएक उनको ख्याल आया और बोल पड़े राकेश भैया बाबा जी के साथ एक फोटो प्लीज... फिर क्या था फोटो खींचने का सिलसिला शुरू हो गया। असिस्टेंट प्रोड्यूसर शंभू जो आम तौर पर साधु संतों को गरियाते नजर आते हैं, बाबा रामदेव के साथ फोटो खिंचवा रहे थे। कुछ देर में बाबा रामदेव न्यूज रूम से चले गए लेकिन चर्चा सिर्फ उन्हीं की हो रही थी। अमर जी जिस सीट पर बैठते हैं उसके ठीक पीछे एसी है, लेकिन बाबा रामदेव से मिलने के बाद वो पसीने से तरबतर थे। अमर जी बोले जा रहे थे, राकेश भैया का आभारी हूं उन्होंने बाबा रामदेव के सामने मेरा नाम लेकर पुकारा और मिलवाया। अमर जी इतने आह्लादित थे कि बुलेटिन की चिंता भी नहीं रही। आगे बोले, इसी तरह से मैं एक बार राष्ट्रपति से भी मिला था। मैंने पूछा, बाबा को एकाएक देखकर कैसा लगा। अमर जी बोल पड़े-- एकदम से कन्फूजिया गया, कुछ समझ में नहीं आया। दूसरी तरफ शंभू मुझसे मोबाइल से फोटो भेजने को कह रहा था। साथ ही अपनी सफाई भी दे रहा था कि वो सिर्फ बाबा रामदेव की ही इज्जत करते हैं। शंभू ने कहा कि वो ये फोटो अपने गांव में सबको दिखाएगा। वहीं न्यूज रूम में कुछ लोग बाबा रामदेव से मिलकर खुश हो रहे लोगों को देख मंद मंद मुस्करा रहे थे। ये मुस्कुराहट रहस्यमयी थी। कुछ देर में ये रहस्यमयी मुस्कुराहत ठहाकों में बदल गई। ऐसे लगा जैसे बम फूटा- किसी ने कहा ये तो नकली बाबा रामदेव थे। अमर जी जैसे नींद से जागे, उनके चेहरे का पसीना सूख गया। शंभू बोला धत तेरी के बेकूफ बना दिया। नकली बाबा से मिलने वाले बाकी लोगों का भी कुछ ऐसा ही हाल था।kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-59253215751761087492011-02-19T06:38:00.000-08:002011-02-19T06:40:02.083-08:00मौत पर भोज पार्ट-3<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjyPrk4XVCWzvclf6O1WgEOGdsKaZIO09Lufnml-ZOzZpXb9kV9Nh6PNB0bjnQnUEun85geNSUIznAB0KlFZQMVrP8ZEPD0Y9HirTGs7mHjEF54fPTI9yT7IzSG7eU1s8-fg2KLf8qInKc/s1600/karm.JPG"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjyPrk4XVCWzvclf6O1WgEOGdsKaZIO09Lufnml-ZOzZpXb9kV9Nh6PNB0bjnQnUEun85geNSUIznAB0KlFZQMVrP8ZEPD0Y9HirTGs7mHjEF54fPTI9yT7IzSG7eU1s8-fg2KLf8qInKc/s320/karm.JPG" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5575410379455930930" /></a><br />हरिद्वार से दिल्ली पहुंचे और दूसरे दिन सुबह सीमांचल एक्सप्रेस से पूर्णियां रवाना हो गए। सारे लोग साथ थे, दो सीट दूसरी बॉगी में थी। दुखी तो हम सारे ही थे, आफत हम सब पर टूटी थी लेकिन पापा तो जैसे टूट ही गए थे। वो दूसरी बॉगी में अकेले ही रहना चाहते थे। काफी मनाने के बाद वो दूसरे पैसेंजर से सीट एक्सचेंज करने को राजी हुए। दूसरे दिन हमलोग गांव पहुंचे वहां पहले से ही समाज के लोग इकट्ठा थे। मेरी 100 साल की दादी पर नजर पड़ते ही पापा फूट-फूट कर रोने लगे। घर की एक एक दीवार में मां बसी थी। हर हवा के झोंके मां की याद दिला रहे थे। हम सब फूट-फूट कर रोने लगे। परिवार समाज के लोग इस घड़ी में अपना कर्तव्य निभाते हुए सांत्वना दे रहे थे। लेकिन दुख उस वक्त हुआ जब किसी ने खाने तक को नहीं पूछा। रात हुई तो समाज के लोग अपने घर चले गए। एक तो मां का गम ऊपर से लंबी दूरी से आने के बाद की थकान। पापा समाज की प्रवृति से वाकिफ से उन्होंने घर पहुंचने से पहले हमें बता दिया था कि घर में चावल-दाल तो है लेकिन सब्जियां बाजार से खरीद लो। उम्मीद मत करना कि रात को कोई खाने को भी पूछेगा। गांव के लोगों में अब उतनी आत्मीयता नहीं रही। घर परिवार के लोग भी अब पहले जैसे नहीं रहे। खाने का मन तो नहीं था लेकिन जिंदा रहने के लिए मन को कठोर करना पड़ा। खुद से खाना बनाया और थोड़ा-थोड़ा खाकर सो गए। दूसरे दिन सुबह से ही सांत्वना देने वालों के आने का सिलसिला जारी रहा। फिर सतलहन से एक दिन पहले गांव के लोगों की मीटिंग हुई। हर मौत के बाद ये बैठक होती थी। इस बैठक में क्रिया- कर्म और भोज भात के बारे में चर्चा का प्रचलन है। बुजुर्गों ने मां की आत्मा की शांति के लिए लंबी लिस्ट बना दी। क्रिया कर्म की लिस्ट देख दिमाग चकरा गया। इसके बाद भोज का खर्चा अलग से। बैठक में ये तय हुआ कि कुल खर्च 2 लाख रुपये के करीब आएगा। महंगाई भी बढ़ गई है। भोज का सिलसिला तो सतलहन से ही शुरू हो गया। हालांकि उस सिर्फ अपने टोले के लोगों को ही खिलाने का प्रचलन है। ब्रह्मण तब तक नहीं खाएंगे जब तक कि हम सब शुद्ध नहीं हो जाते। ब्रह्मण तो हमारे घर की चाय भी नहीं पीते। घर में गरूड़ पुराण का पाठ नियमित रूप से चल रहा था। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि कैसे आप अपने पाप से छुटकारा पा सकते हैं। धरती पर किए पाप की सजा यमराज के दूत देते हैं। हजारों तरह के नर्क होते हैं और हर इंसान के पाप के मुताबिक नर्क का द्वार खुलता है। मृतक आत्मा को ज्यादा कष्ट न हो इसके लिए दान का वर्णन है। गरूड़ पुराण के मुताबिक दान देने लगते तो हमारे परिवार में भुखमरी की नौबत आ जाती है। जमाना कहां से कहां चला गया है लेकिन पंडित गरूड़ पुराण पढ़कर बताते हैं कि अगर आपका पति स्वर्गवासी हो गया है तो आपको सति हो जाना चाहिए। सती होने का तरीका भी बताया गया है। पति की चिता के ऊपर किस तरह बैठना है ये भी बताया गया है। गरूड़ पुराण में लिखा है कि ब्रह्मणों के घर मौत होने पर नखवाल 10वें दिन हो। यानि कि ब्रह्मण जाति के लोग जल्दी शुद्ध होंगे। क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इतनी जल्दी शुद्ध नहीं होंगे। जब मैंने अपने पंडित से पूछा कि हमलोग 10 दिन में शुद्ध क्यों नहीं हो सकते तो उनका कहना था कि कलयुग में धर्म की हानी हुई है इसलिए आपलोग भी अब नियम बदलकर 10 दिनों में नखबाल कर सकते हैं। कहीं न कहीं कहने का मतलब ये था कि हम लोग अधर्मी हो गए हैं इसलिए 10 में करने की बात कर रहे हैं। हम तीनों भाई भोज-भात के पक्ष में नहीं थे। एक तो मां की मौत ऊपर से 2 लाख रुपये का खर्च। पंडितों ने इतना डरा दिया है कि अभी भी लोग इस परंपरा से हटने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। जब पापा से बात की तो वो रोने लगे बोले कि मां की आत्मा को शांति कैसे मिलेगी। समाज के कुछ लोगों ने तो हर कर दी जो दो दिन पहले मौत पर सांत्वना दे रहे थे वही अब बेहतर हलवाई मंगाने की बात कर रहे थे। एक सज्जन जो रिश्ते में मेरे चाचा लगते हैं पापा को कह रहे थे कि इलाके में इज्जत का सवाल है पांच-छह तरह की मिठाई तो जरूर रखना। मेरी एक न चली। मामा मुझे समझा रहे थे, कुछ मत बोलो नहीं तो पापा को कष्ट होगा। मैंने बैठकी में भी भोज-भात का विरोध किया लेकिन कोई फायदा नहीं...। दिल मसोस कर सारी तैयारी में शामिल होता रहा। सतलहन के बाद नखबाल के दिन भी भोज हुआ। एकादशा और द्वादशा के भोज के लिए हलवाई 10 हजार के मेहनताना पर माना। क्रिया-कर्म और भोज में करीब 2 लाख रुपये खर्च हो गए। बावजूद इसके कुछ लोगों को सब्जी में नमक ज्यादा और कम होने की शिकायत होती रही। हद तो तब हो गई जब लोगों को खाना खिलाने वाले गांव के युवकों की टोली ने दारू की मांग की। बेहयाई भरी मांग को भी पूरी करनी पड़ी। इस मांग में मेरे परिवार के लोग भी शामिल थे। बातें बहुत हैं और क्या क्या लिखूं।kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-84232544526820174682010-12-14T07:31:00.003-08:002020-05-06T19:14:42.015-07:00पार्ट-2, धर्म से दिल घायल होता रहाअस्पताल के चक्कर काटते काटते डॉक्टरों से नफरत होने लगी। लेकिन मां की मौत के बाद सबसे ज्यादा नफरत हिंदू धर्म और इस धर्म को बचाए रखने वाले पाखंडियों से होने लगी। 15 अक्टूबर को सुबह करीब 7 बजे मां को लेकर हम लोग हरिद्वार के कनखल श्मशान घाट पहुंचे। लकड़ी कफन का प्रबंध किया। फिर घाट पर पंडित की लीला शुरू हुई। उन दो पंडित और चिता जलाने वाले का चेहरा अब भी याद है। मां को मुखाग्नि देने से पहले गंगाजल हाथ में लिए हम तीनों भाई पंडित के सामने बैठे थे। वो हमारे मुंह से दक्षिणा की राशि कहलवाना चाहता था। हमने कहा जो भी बन पड़ेगा दे देंगे। पंडितों का चेहरा लाल होने लगा। वो जिद कर रहा था कि जो भी दोगे उसे हाथ में गंगाजल लेकर अपने शब्दों से बयां करो। हम तीनों भाई और पापा हतप्रभ थे। मां की असमय मौत से टूटे हुए इन यमराजों के फेर में फंसे थे। हमने पूछा दक्षिणा कितना बनता है? उसका जवाब था तीन स्तर के दक्षिणा का प्रचलन है-
<br />पहला (उत्कृष्ट) मतलब एक लाख या उससे ऊपर,
<br />दूसरा (मध्यम) 50 हजार या उससे ऊपर,
<br />तीसरा (निकृष्ट) 11 हजार रूपये
<br />हमने सोचा भी नहीं था कि मां को जलाने के लिए सौदेबाजी करनी पड़ेगी। मां की इच्छा थी कि वो हरिद्वार आकर कुछ दिन रहे। जिंदा रहते वो आ न सकी इसलिए पापा हरिद्वार में ही दाह संस्कार करना चाहते थे। लेकिन यहां धर्म के सौदागरों का चेहरा देख मन खिन्न हो गया। वो बार बार हमें निकृष्ट होने का अहसास दिलाते रहे। मैंने दोनों पंडितों की बात नहीं मानी। उनसे थोड़ी बहुत बहस भी हो गई। आखिरकार बड़े भैया ने मां को मुखाग्नि दी। दोनों पंडित ये कहकर दूसरे शव के पास चले गए कि 4 घंटे में शव जलने के बाद वो दक्षिणा लेंगे। इशारों ही इशारों में वो ये भी समझा गए कि चिता सजाने वाले, चिता जलाने वाले और वहां मौजूद एक दो और लोगों को भी कुछ न कुछ देना पड़ेगा। हम सब इसी चिंतन में थे कि पता नहीं ये कितने पैसों में मानेगा। लेकिन मैंने भी ठान लिया था कि जब सौदेबाजी ही कर रहा है तो ढंग से करेंगे। पापा ने कहा कि 5 हजार रुपये दे देना लेकिन मैंने बात नहीं मानी। चिता जलने के ठीक बाद फुलिया को गंगा में प्रवाहित करने की बारी आई। हम सब फुलिया को गंगा में प्रवाहित करने लगे। उसी दौरान श्मशान घाट का एक आदमी बोल पड़ा ठहरो सिर वाले हिस्से का राख बचाकर रखना। जब आगे के हिस्से को प्रवाहित करने की बारी आई तो चिता जलाने वाले डोम महाराज फुलिया को गंगा की सीढ़ियों पर रखने को कहने लगे। हम कुछ समझ नहीं पा रहे थे। उसके कहे मुताबिक बाकी बचे फुलिया को सीढ़ियों पर डालने लगे। ये क्या वो तो राख पर पानी डालकर कुछ ढूंढ रहा था। सीढ़ियां उबर खाबर थी इसलिए हल्की राख गंगा में बह जा रही थी लेकिन कुछ सिक्के दिख रहे थे। वो उन सिक्कों को उठाकर अपनी जेब में रख रहा था। वो पागलों की तरह कुछ और ढूंढ रहा था। ठीक उसी वक्त एक पंडित भी पहुंच गया दोनों की गिद्ध नजरें किसी खास चीज को ढूंढने में लगी थी। तब समझ में आया कि मुखाग्नि से पहले मां के मुंह में सोने का टुकड़ा डाला था ये उसे ही ढूंढ रहे हैं। मां नाक में भी सोना पहने हुये थी शायद मुखाग्नि के दौरान इनकी नजर उस पर भी पड़ गई थी। मन व्यथित हो गया। इन लालचियों को देखकर घिन आने लगी। एक ने पूछा कुछ मिला तो दूसरा कमेंट करने से भी बाज नहीं आया बोला, पता नहीं सोना डाला भी था या नहीं। वो भली भांति जानता था कि मुंह में सोना डाला गया है फिर भी तंज कस रहा था। आखिरकार एक ‘गिद्ध’ को सफलता मिल गई। मैंने ध्यान से नहीं देखा लेकिन उसने दो छोटे टुकड़ों को अपनी जेब में डाला। उसके चेहरे का भाव देखकर समझ में आ रहा था कि शायद ये अपने मंसूबे में कामयाब हो गया है। अब बारी थी दक्षिणा की। दक्षिणा लेने के लिए छह लोग जमा हो गये। दोनों पंडित पहले बाकी लोगों को दक्षिणा दिलवाना चाहते थे। खैर हमने सौ डेढ़ सौ के हिसाब से बाकियों को निपटा दिया लेकिन पंडितों का विकराल मुंह फिर खुल गया। दोनों ने फिर तीन स्तर के दक्षिणा की याद दिलाई। फिर ये अहसास कराने लगे कि कम पैसे दोगे तो दाह संस्कार निकृष्ट माना जाएगा। मैंने सीधा जवाब दिया 500 रुपये दूंगा। पंडितों का मुंह बिचक गया वो खाने वाली नजरों से मुझे देखने लगे। मेरे चेहरे पर भी आक्रोश था। शायद दोनों पंडितों को लगा कि ये ज्यादा देने वाला नहीं है। जो अब तक 11 हजार से कम लेने को तैयार नहीं था एकाएक बोल पड़ा 500 में हम नहीं मानेंगे कम से कम 11 सौ रुपये तो दे दो। हमने भी चट 11 सौ रुपये निकालकर दे दिया। हमें लग रहा था जैसे मुक्ति मिली। लेकिन धर्म का आडंबर यहीं खत्म नहीं हो रहा है। अभी तो क्रिया कर्म बाकी था... आगे का अनुभव भी कम कड़वा नहीं रहा। जारी है ... धर्म से दिल घायल होता रहा।kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-50100244034670274872010-12-14T07:31:00.001-08:002010-12-14T18:29:07.691-08:00पार्ट-2, धर्म से दिल घायल होता रहाअस्पताल के चक्कर काटते काटते डॉक्टरों से नफरत होने लगी। लेकिन मां की मौत के बाद सबसे ज्यादा नफरत हिंदू धर्म और इस धर्म को बचाए रखने वाले पाखंडियों से होने लगी। 15 अक्टूबर को सुबह करीब 7 बजे मां को लेकर हम लोग हरिद्वार के कनखल श्मशान घाट पहुंचे। लकड़ी कफन का प्रबंध किया। फिर घाट पर पंडित की लीला शुरू हुई। उन दो पंडित और चिता जलाने वाले का चेहरा अब भी याद है। मां को मुखाग्नि देने से पहले गंगाजल हाथ में लिए हम तीनों भाई पंडित के सामने बैठे थे। वो हमारे मुंह से दक्षिणा की राशि कहलवाना चाहता था। हमने कहा जो भी बन पड़ेगा दे देंगे। पंडितों का चेहरा लाल होने लगा। वो जिद कर रहा था कि जो भी दोगे उसे हाथ में गंगाजल लेकर अपने शब्दों से बयां करो। हम तीनों भाई और पापा हतप्रभ थे। मां की असमय मौत से टूटे हुए इन यमराजों के फेर में फंसे थे। हमने पूछा दक्षिणा कितना बनता है? उसका जवाब था तीन स्तर के दक्षिणा का प्रचलन है- <br />पहला (उत्कृष्ट) मतलब एक लाख या उससे ऊपर, <br />दूसरा (मध्यम) 50 हजार या उससे ऊपर, <br />तीसरा (निकृष्ट) 11 हजार रूपये<br />हमने सोचा भी नहीं था कि मां को जलाने के लिए सौदेबाजी करनी पड़ेगी। मां की इच्छा थी कि वो हरिद्वार आकर कुछ दिन रहे। जिंदा रहते वो आ न सकी इसलिए पापा हरिद्वार में ही दाह संस्कार करना चाहते थे। लेकिन यहां धर्म के सौदागरों का चेहरा देख मन खिन्न हो गया। वो बार बार हमें निकृष्ट होने का अहसास दिलाते रहे। मैंने दोनों पंडितों की बात नहीं मानी। उनसे थोड़ी बहुत बहस भी हो गई। आखिरकार बड़े भैया ने मां को मुखाग्नि दी। दोनों पंडित ये कहकर दूसरे शव के पास चले गए कि 4 घंटे में शव जलने के बाद वो दक्षिणा लेंगे। इशारों ही इशारों में वो ये भी समझा गए कि चिता सजाने वाले, चिता जलाने वाले और वहां मौजूद एक दो और लोगों को भी कुछ न कुछ देना पड़ेगा। हम सब इसी चिंतन में थे कि पता नहीं ये कितने पैसों में मानेगा। लेकिन मैंने भी ठान लिया था कि जब सौदेबाजी ही कर रहा है तो ढंग से करेंगे। पापा ने कहा कि 5 हजार रुपये दे देना लेकिन मैंने बात नहीं मानी। चिता जलने के ठीक बाद फुलिया को गंगा में प्रवाहित करने की बारी आई। हम सब फुलिया को गंगा में प्रवाहित करने लगे। उसी दौरान श्मशान घाट का एक आदमी बोल पड़ा ठहरो सिर वाले हिस्से का राख बचाकर रखना। जब आगे के हिस्से को प्रवाहित करने की बारी आई तो चिता जलाने वाले डोम महाराज फुलिया को गंगा की सीढ़ियों पर रखने को कहने लगे। हम कुछ समझ नहीं पा रहे थे। उसके कहे मुताबिक बाकी बचे फुलिया को सीढ़ियों पर डालने लगे। ये क्या वो तो राख पर पानी डालकर कुछ ढूंढ रहा था। सीढ़ियां उबर खाबर थी इसलिए हल्की राख गंगा में बह जा रही थी लेकिन कुछ सिक्के दिख रहे थे। वो उन सिक्कों को उठाकर अपनी जेब में रख रहा था। वो पागलों की तरह कुछ और ढूंढ रहा था। ठीक उसी वक्त एक पंडित भी पहुंच गया दोनों की गिद्ध नजरें किसी खास चीज को ढूंढने में लगी थी। तब समझ में आया कि मुखाग्नि से पहले मां के मुंह में सोने का टुकड़ा डाला था ये उसे ही ढूंढ रहे हैं। मां नाक में भी सोना पहने हुये थी शायद मुखाग्नि के दौरान इनकी नजर उस पर भी पड़ गई थी। मन व्यथित हो गया। इन लालचियों को देखकर घिन आने लगी। एक ने पूछा कुछ मिला तो दूसरा कमेंट करने से भी बाज नहीं आया बोला, पता नहीं सोना डाला भी था या नहीं। वो भली भांति जानता था कि मुंह में सोना डाला गया है फिर भी तंज कस रहा था। आखिरकार एक ‘गिद्ध’ को सफलता मिल गई। मैंने ध्यान से नहीं देखा लेकिन उसने दो छोटे टुकड़ों को अपनी जेब में डाला। उसके चेहरे का भाव देखकर समझ में आ रहा था कि शायद ये अपने मंसूबे में कामयाब हो गया है। अब बारी थी दक्षिणा की। दक्षिणा लेने के लिए छह लोग जमा हो गये। दोनों पंडित पहले बाकी लोगों को दक्षिणा दिलवाना चाहते थे। खैर हमने सौ डेढ़ सौ के हिसाब से बाकियों को निपटा दिया लेकिन पंडितों का विकराल मुंह फिर खुल गया। दोनों ने फिर तीन स्तर के दक्षिणा की याद दिलाई। फिर ये अहसास कराने लगे कि कम पैसे दोगे तो दाह संस्कार निकृष्ट माना जाएगा। मैंने सीधा जवाब दिया 500 रुपये दूंगा। पंडितों का मुंह बिचक गया वो खाने वाली नजरों से मुझे देखने लगे। मेरे चेहरे पर भी आक्रोश था। शायद दोनों पंडितों को लगा कि ये ज्यादा देने वाला नहीं है। जो अब तक 11 हजार से कम लेने को तैयार नहीं था एकाएक बोल पड़ा 500 में हम नहीं मानेंगे कम से कम 11 सौ रुपये तो दे दो। हमने भी चट 11 सौ रुपये निकालकर दे दिया। हमें लग रहा था जैसे मुक्ति मिली। लेकिन धर्म का आडंबर यहीं खत्म नहीं हो रहा है। अभी तो क्रिया कर्म बाकी था... आगे का अनुभव भी कम कड़वा नहीं रहा। <em><strong>जारी है ... धर्म से दिल घायल होता रहा।</strong></em>kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-5196868057005222922010-12-13T07:07:00.001-08:002010-12-13T07:12:32.922-08:00काहे का धर्म, काहे का भगवान ? पार्ट-1मैं किसी धर्म को क्यों मानता हूं। मैं हिंदू क्यों कहलाता हूं। जबसे होश हुआ है कभी शपथ पत्र पर हस्ताक्षर तो नहीं किया कि मैं हिंदू हूं और जीवनभर हिंदू रहूंगा। हिंदू ही क्यों मुसलमान, सिख या फिर किसी और धर्म के होने का भी तो प्रमाणपत्र नहीं है मेरे पास। हां मैं हिंदू कहलाता हूं। सिर्फ इसलिए कि मैं एक राजपूत घर में पैदा हुआ जो कि हिंदू धर्म की एक जाति है। बचपन से घरवालों ने जैसा कहा, वैसा किया। भगवान और अल्लाह में भेद करना सिखाया। अपने- पराये में भेद करना सिखाया। जो सिखाया प्यार से सीखता गया। छिपकली को हिंदू और मकरे को मुसलमान समझने लगा। छिपकली को बचाकर और मकरे को मारकर गर्व होता था। लगता था चलो आज मुसलमानों को कुछ तो नुकसान पहुंचाया। मानसिकता बनी मुसलमान गंदे होते हैं। हालांकि मेरे घर दादा के एक दोस्त आते थे अब भी आते हैं जो मुसलमान हैं। दादा उन्हें अपने भाई के समान मानते थे। हमलोगों को सिखाया गया था कि उनके पैर छुने हैं। हम छुते भी थे लेकिन उस वक्त कोई नफरत नहीं होती थी। मन में एक सवाल जरूर कौंधता था जब मुसलमान गंदे होते हैं तो मतुल दादा गंदे क्यों नहीं हैं। लेकिन वो जिस तरीके से घर में सबसे मिलते थे और सब उनकी इज्जत करते थे उससे मन में कन्फ्यूजन पैदा होता था। आखिर सच क्या है। किसका धर्म अच्छा है। खैर भेदभाव यहां भी था, मतुल दादा के अलग कप में चाय भेजी जाती थी। पता नहीं उनको इस बात का अहसास था भी या नहीं। लेकिन मेरे दादाजी इस बात के खिलाफ थे इतना जरूर पता था। वो टीचर से रिटायर्ड होकर घर पर बैठे थे। उनके मन में भेदभाव की लकीर कभी नहीं देखी थी। खैर मैं जरा दूसरी तरफ भटक गया। असली मुद्दा हिंदू होने का है। पूजा पाठ में भी मन लगा। मेरा जन्म नवरात्र के दिन यानि पहली पूजा को हुआ था। घरवाले मुझे लकी मानते थे। भगवान में मेरा भी खूब भरोसा था। जब तक घर पर रहा बिना कुछ सोचे समझे पूजा पाठ में खूब मन रमाया। मेरे यहां हर महीने सत्यनारायण भगवान की कथा का प्रचलन आज भी है। नवरात्र में नौ दिन तक पूजा होती है। घर में कलश स्थापित होता है। इस बार मां दिल्ली के अस्पताल में भर्ती थी इसलिए घर पर पूजा नहीं हो सकी। सबने यही सोचा था मां ठीक हो जाए तो अगले साल धूमधाम से पूजा करेंगे। नवरात्र के दौरान सप्तमी को दिल्ली के एम्स में मां की सांसें थम गई। मौत से सिर्फ दो घंटा पहले पता चला था कि मां को ब्रेन ट्यूमर है। इससे पहले फेफड़े की बीमारी ब्रॉन्काइटिस से पीड़ित थी और किडनी से प्रोटीन लीक हो रहा था, जिसे डॉक्टर FSGS का नाम दे रहे थे। डॉक्टर्स का कहना था कि 5 साल तक कुछ नहीं होगा लेकिन मेरी मां नहीं रही। नवरात्र में पैदा होने के कारण मैं खुद को भाग्यशाली मानता था अब नवरात्र में ही मैं सबसे दुर्भाग्यशाली बन गया। मां के बिना दुनिया उजड़ गई। पहली बार मन में सवाल उठने लगे कि भगवान होते भी हैं या नहीं। लेकिन मां की मौत के बाद जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा उससे भगवान और हिंदू धर्म दोनों से नफरत होने लगी। आखिर ऐसा क्यों हुआ फिर कभी बताऊंगा। ....<em><strong> जारी है... जिंदगी के दुखद अनुभव जिससे दुनिया और धर्म को कुछ हद तक समझ पाया।</strong></em>kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-30102155709932532162010-12-13T07:07:00.000-08:002020-05-06T19:14:41.988-07:00काहे का धर्म, काहे का भगवान ?मैं किसी धर्म को क्यों मानता हूं। मैं हिंदू क्यों कहलाता हूं। जबसे होश हुआ है कभी शपथ पत्र पर हस्ताक्षर तो नहीं किया कि मैं हिंदू हूं और जीवनभर हिंदू रहूंगा। हिंदू ही क्यों मुसलमान, सिख या फिर किसी और धर्म के होने का भी तो प्रमाणपत्र नहीं है मेरे पास। हां मैं हिंदू कहलाता हूं। सिर्फ इसलिए कि मैं एक राजपूत घर में पैदा हुआ जो कि हिंदू धर्म की एक जाति है। बचपन से घरवालों ने जैसा कहा, वैसा किया। भगवान और अल्लाह में भेद करना सिखाया। अपने- पराये में भेद करना सिखाया। जो सिखाया प्यार से सीखता गया। छिपकली को हिंदू और मकरे को मुसलमान समझने लगा। छिपकली को बचाकर और मकरे को मारकर गर्व होता था। लगता था चलो आज मुसलमानों को कुछ तो नुकसान पहुंचाया। मानसिकता बनी मुसलमान गंदे होते हैं। हालांकि मेरे घर दादा के एक दोस्त आते थे अब भी आते हैं जो मुसलमान हैं। दादा उन्हें अपने भाई के समान मानते थे। हमलोगों को सिखाया गया था कि उनके पैर छुने हैं। हम छुते भी थे लेकिन उस वक्त कोई नफरत नहीं होती थी। मन में एक सवाल जरूर कौंधता था जब मुसलमान गंदे होते हैं तो मतुल दादा गंदे क्यों नहीं हैं। लेकिन वो जिस तरीके से घर में सबसे मिलते थे और सब उनकी इज्जत करते थे उससे मन में कन्फ्यूजन पैदा होता था। आखिर सच क्या है। किसका धर्म अच्छा है। खैर भेदभाव यहां भी था, मतुल दादा के अलग कप में चाय भेजी जाती थी। पता नहीं उनको इस बात का अहसास था भी या नहीं। लेकिन मेरे दादाजी इस बात के खिलाफ थे इतना जरूर पता था। वो टीचर से रिटायर्ड होकर घर पर बैठे थे। उनके मन में भेदभाव की लकीर कभी नहीं देखी थी। खैर मैं जरा दूसरी तरफ भटक गया। असली मुद्दा हिंदू होने का है। पूजा पाठ में भी मन लगा। मेरा जन्म नवरात्र के दिन यानि पहली पूजा को हुआ था। घरवाले मुझे लकी मानते थे। भगवान में मेरा भी खूब भरोसा था। जब तक घर पर रहा बिना कुछ सोचे समझे पूजा पाठ में खूब मन रमाया। मेरे यहां हर महीने सत्यनारायण भगवान की कथा का प्रचलन आज भी है। नवरात्र में नौ दिन तक पूजा होती है। घर में कलश स्थापित होता है। इस बार मां दिल्ली के अस्पताल में भर्ती थी इसलिए घर पर पूजा नहीं हो सकी। सबने यही सोचा था मां ठीक हो जाए तो अगले साल धूमधाम से पूजा करेंगे। नवरात्र के दौरान सप्तमी को दिल्ली के एम्स में मां की सांसें थम गई। मौत से सिर्फ दो घंटा पहले पता चला था कि मां को ब्रेन ट्यूमर है। इससे पहले फेफड़े की बीमारी ब्रॉन्काइटिस से पीड़ित थी और किडनी से प्रोटीन लीक हो रहा था, जिसे डॉक्टर FSGS का नाम दे रहे थे। डॉक्टर्स का कहना था कि 5 साल तक कुछ नहीं होगा लेकिन मेरी मां नहीं रही। नवरात्र में पैदा होने के कारण मैं खुद को भाग्यशाली मानता था अब नवरात्र में ही मैं सबसे दुर्भाग्यशाली बन गया। मां के बिना दुनिया उजड़ गई। पहली बार मन में सवाल उठने लगे कि भगवान होते भी हैं या नहीं। लेकिन मां की मौत के बाद जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा उससे भगवान और हिंदू धर्म दोनों से नफरत होने लगी। आखिर ऐसा क्यों हुआ फिर कभी बताऊंगा।
<br />kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-79094965573329651102010-12-12T22:09:00.000-08:002010-12-12T22:11:19.591-08:00गंदे पत्रकार, गंदी पत्रकारिताइस हमाम में सब नंगे हैं। पत्रकारों की जमात में नंगों की कमी नहीं है। जब भारत गुलाम था, पत्रकार सच्चे थे। वो भारत को आजादी दिलाने के लिए लिखते थे। आजादी मिल गई तो पत्रकारों का चरित्र बदलने लगा। छोटे से बड़े सभी पत्रकार कमाने के फेर में लग गए। पत्रकारिता एक व्यवसाय के रूप में उभरने लगा तो गंदगी बढ़ने लगी। स्ट्रिंगर से लेकर रिपोर्टर और संपादक तक नंगे होने लगे। हालांकि कुछ पत्रकार अब भी इमानदार बने रहे लेकिन इनकी संख्या न के बराबर ही रही। पत्रकारों को बेईमान बनने के पीछे कई कारण रहे हैं। स्ट्रिंगर और छोटे रिपोर्टर इसलिए दलाल बन गए हैं कि क्योंकि उनकी सैलरी बहुत ही कम होती है। इसमें मीडिया संस्थानों की महती भूमिका होती है। सभी टीवी चैनल या अखबार मालिकों को पता है कि स्ट्रिंगर के परिवार का पेट महज 2 हजार या 3 हजार रूपये महीना की सैलरी में भरने वाला नहीं है। स्ट्रिंगर तो गांव और ब्लॉक स्तर पर जमकर दलाली करते हैं। वहां इनका बड़ा रूतवा होता है। स्ट्रिंगर पत्रकारिता से ज्यादा दलाली और पंचायत करने में अपना बड़प्पन समझते हैं। थानों में दरोगाजी के सामने ऐसे पत्रकारों की बड़ी इज्जत होती है। इतना ही नहीं मीडिया संस्थान इन स्ट्रिंगरों से ही अपना विज्ञापन भी मंगवाते हैं। विज्ञापन के खेल में भी इन स्ट्रिंगरों की कमाई हो जाती है। ये तो रही स्ट्रिंगरों की बात। पत्रकारों की ये बीमारी श्रृखलाबद्ध तरीके से ऊपर तक फैली है। स्ट्रिंगर सौ दो सौ या कुछ हजार लेकर खुश रहते हैं लेकिन जैसे जैसे इससे ऊपर बढ़ेंगे दलाली का रेट भी बढ़ता जाता है। जिला स्तर के स्ट्रिंगर गांव वाले स्ट्रिंगर से ज्यादा कमाते हैं। कुछ तो शहर में ही अपना केबल टीवी चैनल खोल लेते हैं। जिला स्तर के भ्रष्ट अधिकारियों से मिलकर खूब कमाई करते हैं। ये राज्य स्तर के पत्रकारों में बीमारी का स्तर अलग होता है जाहिर है ये प्रदेश की राजधानी में डेरा जमाए रहते हैं जहां विधायक और मंत्रियों की चलती है। बात जब दिल्ली तक पहुंचती है तो पत्रकारों की दलाली अपने चरम पर पहुंच जाती है। अब तक आदर्श पत्रकारों के तौर पर मशहूर वीर सांघवी, बरखा दत्त की भी पोल खुल गई है। अब वो चाहे कितनी भी सफाई दे दें लोगों के दिलोदिमाग में सच घर कर चुका है। भले ही इन दल्ला पत्रकारों पर संस्थान कोई कार्रवाई न करें, इन्हें कोर्ट के भी चक्कर न लगाना पड़े लेकिन सच तो सच है। दुनिया जान चुकी है कि बरखा दत्त, प्रभु चावला, वीर सांघवी जैसे नामी पत्रकार जो इमानदारी और भष्ट्राचार को खत्म करने की बड़ी बड़ी बातें करते हैं दरअसल वो बकवास से ज्यादा कुछ नहीं है।kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-24323903639389951002010-04-02T01:27:00.000-07:002010-04-02T01:28:17.832-07:00हिंदी न्यूज चैनल वाले चोर हैंआखिरकार नव भारत टाइम्स ने ये साबित कर दिया कि ज्यादातर हिंदी न्यूज चैनव वाले अखबार से या अखबार की वेबसाइट से खबर चुराते हैं। कभी कभी तो अखबार की Exclusive खबर पर भी हाथ साफ कर देते हैं। एक अप्रैल को नवभारत टाइम्स ने चैनलों को रंगे हाथों पकड़ा ही नहीं... दर्शकों के सामने नंगा भी कर दिया। हुआ यूं कि एक अप्रैल को नवभारत टाइम्स पर ‘सानिया को सास की नसीहत’ की खबर छपी। खबर में लिखा था कि सानिया की सास नहीं चाहती कि वो स्कर्ट पहनकर टेनिस खेलें और पराए मर्दों से ज्यादा घुले मिले। इतना ही नहीं नवभारत टाइम्स की वेबसाइट पर सानिया की सास का नाम और सास का इंटरव्यू छापने वाले अखबार का भी नाम दिया गया था। फिर क्या था हिंदी चैनलों के बड़े-बड़े पत्रकार इस खबर को पहले दिखाने के चक्कर में ग्राफिक्स बनवाने लगे। कूद कूद कर जूनियर को जल्दी खबर करने के लिए कहने लगे। कुच चैनल तो चेप्टर (text gfx) के साथ खबर लेकर लाइव उतर गए। पाकिस्तान से फोनो चलने लगा। पाकिस्तान के भी कुछ रिपोर्टर जैसे भारतीय न्यूज चैनलों में फोनो देने के लिए तैयार ही बैठे रहते हैं। एक चैनल पर ‘सानिया को सास की नसीहत’ खबर चली नहीं कि दूसरे चैनल के वरिष्ठ पत्रकार जूनियरों पर पिल पड़े – तुम लोग कुछ नहीं कर सकते देखो, फलां चैनल फिर बाजी मार गया.... तुम लोग निकम्मे हो ... अबे जल्दी चलाओ... ग्राफिक्स का इंतजार मत करो, चेप्टर से उतर जाओ ...पाकिस्तान से फोनो लो ... इधर खबरिया चैनल के पत्रकार खबर चलाने में व्यस्त थे उधर नवभारत टाइम्स के दफ्तर में तालियां बज रही थी, हर कोई कह रहा था देखो पकड़ लिया चोर चैनल वालों को... खोल दी इनकी लंगोट अब और करो चोरी। चैनल पर ये खबर उस समय गिर गई जब पाकिस्तान से शोएब मलिक के जीजा ने खबर का खंडन किया। नवभारत टाइम्स ने अपनी वेबसाइट पर पूरी खबर छाप दी। ये भी बता दिया कि सानिया की सास का जो नाम लिखा गया था वो भी सही नहीं था। साथ ही जिस पाक अखबार के हवाले से खबर लिखी गई थी, वैसा कोई अखबार है ही नहीं। ये झूठी खबर सिर्फ चैनव वालों को मूर्ख बनाने और रंगे हाथों पकड़ने के लिए था।kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-40792520138685433162010-03-09T10:19:00.000-08:002010-03-09T10:26:16.579-08:00हिजड़ा मतलब गुंडा !<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWlZO4bA6GXac9Vij68pwQj3AJ7xsZ0WnXpFcs9vPRc54Nf7JMDmqxH56TDTIg81hrCsvTL5IBQacayjgIBwR58Wqm9XtgMh4PsPoHYAsTP9Z-1CvAcGkF7iqFGbkR0CkvtbAUcrJIgOU/s1600-h/hijde.bmp"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 210px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWlZO4bA6GXac9Vij68pwQj3AJ7xsZ0WnXpFcs9vPRc54Nf7JMDmqxH56TDTIg81hrCsvTL5IBQacayjgIBwR58Wqm9XtgMh4PsPoHYAsTP9Z-1CvAcGkF7iqFGbkR0CkvtbAUcrJIgOU/s320/hijde.bmp" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5446701308782274130" /></a><br />रात के 12 बजे ऑफिस से घर के लिए निकला। लक्ष्मी नगर में साईं के भक्त भंडारा कर रहे थे। लोगों की लंबी लाइन लगी थी। विश्वास नहीं हो रहा था कि रात के साढ़े 12 बजे महिला पुरूष भंडारे का लुत्फ उठाएंगे। मैं भी भंडारे के लिए लाइन में लग गया। भंडारे में लाइन की व्यवस्था ठीक रहे इसके लिए कई साईं भक्त देखभाल कर रहे थे। तभी दो हिजड़े लाइन में न लगकर सीधे भंडारे के पास पहुंचने लगे। कार्यकर्ताओं ने रोकने की कोशिश तो हिजड़े गुस्से में अपनी अदा दिखाने लगे। हिजड़े चीखने लगे... मुझे रोकने की कोशिश कर रहे हो... मुझसे बदतमीजी कर रहे हो... मुझे जानते नहीं तुम लोगों को देख लूंगा। लेकिन साईं भक्त भी मानने वाले नहीं ... जय साईं, जय साईं कहते हुए हिजड़ों को आगे जाने से रोक दिया। आखिरकार गाली गलौज करते हुए हिजड़े वहां से निकल लिए। मैं इस वाकये का गवाह था... सोचने लगा आखिर हिजड़े दादागीरी पर क्यों उतर आते हैं? भंडारे में खाया और घर आकर सो गया। सुबह नींद खुली तो घर की घंटी बजी। देखा एक हिजड़ा खड़ा था। कह रहा था/रही थी घर में बच्चा हुआ है पैसे निकालो। मैंने कहा भई बच्चा हुआ तो तुम्हें पैसे क्यों दूं। हिजड़ा- तुम्हारे बच्चे की उम्र लंबी होगी। मैंने कहा- उसकी उम्र यूं ही लंबी हो जाएगी तुम चिंता न करो। खैर मेरी मां ने 100 रुपए का नोट निकालकर दिया। हिजड़ा तैश में आ गया – ये क्या दे रहे हो... साढ़े सात हजार दो, 5 हजार या फिर कम से कम ढाई हजार रुपए दो। मैंने कहा- मम्मी इसे कुछ भी मत दो। हिजड़े ने गुस्से में कहा- भूत प्रेत लगे तो पीछा छोड़ देता है, हिजड़े पीछा नहीं छोड़ते... देखना पैसे लेकर रहूंगा। मैं भी पैसा नहीं देने पर अड़ गया। मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा। हिजड़ा यहां भी दादागीरी से पैसे वसूल करना चाहता था। हिजड़े ने कहा, दिल्ली में रहना है तो पैसे तो देने ही होंगे। मैंने 100 नंबर डायल कर दिया। पुलिस के फोन लगाते देख हिजड़े ने तैश में कहा कि मैं अपने बाकी साथियों को बुलाता हूं.... उस वक्त हिजड़े 5-6 की टोली में थे। वे मेरी फ्लैट से नीचे उतरा लेकिन फिर लौटा नहीं। कुछ देर बात पुलिस भी आ गई लेकिन तब तक हिजड़े जा चुके थे। पुलिसवालों ने कहा हिजड़े फिर आए तो फोन कर देना। सुबह सुबह मूड खराब हो गया। आस परोड़ वाले मुझे ही कोस रहे थे, उनका कहना था कि हिजड़े को हजार दो हजार दे देते तो क्या होता उनकी बददुआ लेना ठीक नहीं।kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-10774915194159939802010-03-07T09:09:00.000-08:002010-03-07T09:20:53.105-08:00वो क्यूं चला गया?.<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnHrqY_TvYfzaYfRgySYvrhlg1CSV067XVLNMz1IBpF9XceSC4JpQvCUyFWuf80baNuZXQJ4w9ADgNKXums22B-WXgtfFeO6ojaErEAxCteCPW3f_aV06bXzqyOr47oJoecWIp5PR6zJc/s1600-h/unknown_face.gif"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 119px; height: 137px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnHrqY_TvYfzaYfRgySYvrhlg1CSV067XVLNMz1IBpF9XceSC4JpQvCUyFWuf80baNuZXQJ4w9ADgNKXums22B-WXgtfFeO6ojaErEAxCteCPW3f_aV06bXzqyOr47oJoecWIp5PR6zJc/s320/unknown_face.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5445942040679936866" /></a><br />शादी के 18 साल और बड़ी मन्नतों के बाद एक बेटा हुआ। बेटे के बाद तो भगवान ने झोलियां भर दी एक के बाद एक तीन बेटियों से घर भर गया। अब तक सास की तानों से परेशान थी अब भगवान ने सबकुछ दे दिया। बस थोड़ा कचोट तो होगा ही कि भगवान ने बेटा एक ही दिया... काश! तीन बेटियों में से एक बेटा होता????? घर में भेदभाव की नींव भी पड़ गई। बेटियों से लगाव न हो ऐसी बात नहीं थी। तीनों के लालन पालन में कोई कमी भी नहीं हुई लेकिन बेटा तो बेटा ही था। घर का अकेला चिराग वो भी शादी के 18 साल बाद जो आया था। बेटे को ज्यादा तवज्जो और बेटियों को थोड़ा कम। बेटे की पढ़ाई महंगे कॉन्वेंट स्कूल में बेटियों की पढ़ाई दिल्ली के सरकारी स्कूलों में। बेटे को लाड़ प्यार ने बिगाड़ दिया मन आसमान छूने लगा। बड़े घर के बेटों के बीच पढ़ाई करके खुद को भी करोड़पति समझने लगा था। बेटियां हमेशा कायदे में रही घर के हालात के मुताबिक बिल्कुल फिट। बेटे ने सपना देखा.... सपनों में छलांग लगाई... आसमान में उड़ता रहा। बेटा घर के हालात से बेफिक्र रहा या फिर मां-बाप ने हालत समझने ही नहीं दिया। नौंवी क्लास तक आते आते बेटे की इच्छाओं पर कुठाराघात होने लगा। शायद करोड़पति दोस्तों जैसी सुविधा नहीं मिली, हालांकि मां बाप के प्यार में कोई कमी नहीं रही, लेकिन उसके मन मष्तिष्क का आधार करोड़पति बच्चों जैसा बन गया था। इच्छाएं पूरी नहीं हुई तो सर्किल भी खराब हो गया। पढ़ाई से मन उचटने लगा। किसी तरह दसवीं पास की और आगे न पढ़ने की जैसे कसम ही खा ली। उसे तो बस इतनी पढ़ाई में ही अमीर बनना था। किसी तरह बारहवीं की पढ़ाई भी पूरी हो गई। बात रोजगार की आई तो कॉल सेंटर में नौकरी कर ली। कॉल सेंटर की नौकरी से भी मन उचट गया। उसका मन कहीं नहीं लगता था... वो शराब भी पीने लगा था। घरवाले परेशान रहते कि आखिर ये चाहता क्या है... इसकी इच्छाएं क्या हैं? उसे जितना समझने की कोशिश की गई घरवाले उतने ही कन्फ्यूज होते गए। या तो वो घरवालों को नहीं समझ पा रहा था या फिर घरवाले उसे नहीं समझ पा रहे थे। घर के मुखिया इनकमटैक्स की नौकरी से रिटायर्ड हो गए। घर के मुखिया ने छोटा मोटा रोजगार भी शुरू कर दिया और इकलौटे बेटे को उसमें शामिल कर लिया। करोड़पति बनने के ख्वाब देखने वाला इकलौता अपने काम से खुश नहीं था। वो जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा कमाना चाहता था। उसके महंगे शौक थे। घरवालों ने ये सोचकर शादी करवा दी कि शायद उसकी जिंदगी एक ढर्रे पर आ जाए। शादी के बाद भी एकलौते बेटे का मन शांत नहीं हुआ, पता नहीं उसे अब भी किस चीज की तलाश थी। इतनी कम उम्र में हार्ट की बीमारी भी हो गई। टेंट का बिजनेस पूरी लगन के साथ करता था लेकिन मन की इच्छाओं को कभी शांत नहीं कर पाया। वो अंदर ही अंदर सपने बुनता रहा और सपने को मरते हुए देखता रहा। अब उसका कोई दोस्त नहीं था जिसके सामने दिल की बात कहता। पत्नी से भी कुछ नहीं कहता था। हर घर की तरह अपने घर में भी सास-बहू के बीच होने वाली हल्की नोंक झोंक से भी थोड़ा परेशान रहता था। 7 फरवरी 2010 की रात... हर रात की तरह वो करीब 12 बजे घर लौटा। हल्की शराब भी पी रखी थी। बेवजह पत्नी को डांट दिया... पत्नी ड्राईंग रूम में सोने चली गई। रात के 2 बजे जब कमरे में लौटी तो घर के इकलौते चिराग का शरीर ठंडा पड़ा था। घरवाले जाग गए... अस्पताल ले जाया गया ... जहां इमरजेंसी में ईसीजी मशीन की रिपोर्ट में एक लंबी सीधी लाइन के सिवा कुछ नहीं आया ... भरे पूरे परिवार का इकलौता चिराग अब नहीं था। हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज या फिर आत्महत्या ... रहस्य बरकरार है ... पुलिस की तफ्तीश जारी है ...(एक सच्ची घटना पर आधारित)(लोगों का नाम देना उचित नहीं समझा)kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-12283299679192775292010-01-10T13:18:00.000-08:002010-01-10T13:22:19.319-08:00पीसीआर वैन किसके लिए ?दिल्ली पुलिस का एक चेहरा देखा तो सन्न रह गया। बीते साल नवंबर में कनॉट प्लेस में था। फुटपाथ पर दुकानदारों का मजमा लगा था। दुकानदार और खरीदार में मोल तोल कर रहे थे। ठीक उसी जगह पर सड़क किनारे पुलिस की पीसीआर वैन खड़ी थी। कुछ पुलिस वाले भी दुकान पर सामान देख रहे थे। एक महिला पुलिसकर्मी भी मौजूद थीं। ठीक उसी वक्त एक दुकानदार को दो ग्राहकों ने तड़ातड़ थप्पड़ जड़ दिए। फिर देखते ही देखते तीन चार दुकानदार जमा हो गए और दोनों ग्राहकों की जमकर धुनाई शुरू कर दी। माहौल बिल्कुल फिल्मी था। स्टाइल में मारपीट, गाली- गलौज हो रही थी। रंग बिरंग की गालियां पड़ रही थीं। मैं भी सड़क पर खड़ा होकर तमाशबीन बन गया। मेरी नजर उन पुलिसवालों की तरफ गई मेरी तरह ही तमाशा देख रहे थे। मुझे लगा अब पुलिस वाले हस्तक्षेप करेंगे। दोनों पक्ष को मारपीट से रोकेंगे। लेकिन ये क्या पुलिस वाले तो निकल लिए। जो पुलिसवाले अब तक खड़े थे वो जाकर पीसीआर वैन में बैठ गए और वैन आगे बढ़ गई। मैं सन्न रह गया। ये कैसी पुलिस ?kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-24274387470235752992009-11-11T19:01:00.000-08:002009-11-11T21:04:25.922-08:00किसके बाप की है ट्रेन ?<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpk8svakxs1XVn0mZ6wjm11bCON9op5GHWxnvsiXcyNd0wNA9MghVXxt7jw5R5mFigeQzzBGC0oMAQ0nnIskcyx1uI2u6sYy3fUGVk6rPoRPWmNNjzBZHCTirgtESPOHn_zdPFxS8x0Xk/s1600-h/IMG00164-20091112-1026.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5403078505551479922" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 240px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpk8svakxs1XVn0mZ6wjm11bCON9op5GHWxnvsiXcyNd0wNA9MghVXxt7jw5R5mFigeQzzBGC0oMAQ0nnIskcyx1uI2u6sYy3fUGVk6rPoRPWmNNjzBZHCTirgtESPOHn_zdPFxS8x0Xk/s320/IMG00164-20091112-1026.jpg" border="0" /></a><br /><div>लालू जी रेल मंत्री नहीं रहे तो क्या हुआ, ये ट्रेन अपना ही तो है। कहीं भी वेक्यूम कर दो। ट्यूबलाइट, बल्ब खोल लो। आखिर सरकारी संपत्ति जो है। अपना हिस्सा तो लेकर रहेंगे। पटना के पास सटे बख्तियारपुर के उपद्रवी सैंकड़ों लोगों से यात्रियों से भरी ट्रेन को पहले तो रोक दिया फिर इंजन खोलकर ले उड़े। रेलवे ने लॉ एंड ऑर्डर का मामला सरकार के अधीन कहकर पल्ला झाड़ लिया। दानापुर- टाटा एक्सप्रेस के यात्री बेबस और लाचार हो गए। उपद्रवी ट्रेन को बपौती संपत्ति समझ छह किलोमीटर दूर तक ले गए। इंजन को पटरी से नहीं उतार पाए नहीं तो अपने घर ले जाते। एक तरफ तो इमानदार दरोगा के ट्रांसफर का विरोध कर जागरूकता का परिचय दिया। वहीं दूसरी तरफ नेशनल हाईवे पर जाम लगाकर और ट्रेन रोककर मूर्खता और बर्बरता का परिचय दिया। आखिर किसने दिया इन्हें ये अधिकार ? 6 किलोमीटर तक इंजन ले जाने के वक्त पुलिस कहां थी। सबको पता है अगर पुलिस चाहती तो 2 मिनट में उपद्रवियों को सबक सिखा देती। क्या इंजन लेकर भागने वाले अनपढ़ गंवार थे? भैया होंगे भी क्यों नहीं जब पढ़ाने वाले ज्यादातर शिक्षामित्र ही लुच्चे लफंगे हैं तो सीख भी तो वैसी ही देंगे। उपद्रवियों में ज्यादातर 8 साल से 16 साल के बीच के बच्चे शामिल थे। नीतीश जी संभल जाइये नहीं तो किसी दिन आपको भी उठाकर ले जाएंगे ...</div>kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-85795857300682715702009-11-07T01:21:00.000-08:002009-11-07T01:24:27.402-08:00बिहार पीछे जा रहा है !बिहार में नीतीश कुमार ने विकास की बयार बहाने की भरसक कोशिश की लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में मुख्यमंत्री की नीति तुगलकी नीति साबित हो रही है। मोहम्मद बिन तुगलत ने अपनी कई नीतियों को वापस ले लिया था लेकिन नीतीश कुमार की शिक्षा नीति अनवरत जारी है और बिहार लगातार पिछड़ता ही जा रहा है। जिन निमय कानूनों और शैक्षिक स्तर पर शिक्षामित्रों की बहाली हुई वो अब बिहार को सालों पीछे धकेल चुका है। जिस शिक्षा के बल पर कोई राज्य या राष्ट्र प्रगति की रफ्तार पकड़ता है उसी शिक्षा को बिहार की नीतीश सरकार ने बेहद हल्के अंदाज में लिया। जितने शिक्षामित्रों की बहाली हुई है उनमें से सिर्फ दस प्रतिशत योग्य हैं और इमानदारी से काम कर रहे हैं।<br /><strong><span style="color:#ff0000;">कौन नहीं जानता</span></strong> कि कुछ दिनों पहले तक बिहार में मैट्रिक और इंटर में चोरी और पैरवी के बल पर नंबर बढ़ाए जाते थे। बाद में चोरी और पैरवी के इसी नंबर का इस्तेमाल कर ज्यादातर लोग शिक्षामित्र बने। जो पढ़े लिखे, योग्य और सचमुच मेहनती थे वो अपनी रोटी का जुगाड़ कर चुके थे। बहुत सारे योग्य छात्र बैंक की नौकरी या एलडीसी, यूडीसी और रेलवे में जा चुके थे। बहुत कम ऐसे योग्य छात्र बचे थे जो बेरोजगार थे और बाद में शिक्षामित्र बने। हालांकि इसके बावजूद हजारों योग्य नवयुक बेरोजगार रह गय़े हैं। ये उस श्रेणी में हैं जो योग्य तो हैं लेकिन उन्हें मैट्रिक और इंटर में अच्छे प्रतिशत नहीं मिले। इसकी भी एक वजह थी पढ़ने वाले लड़के चोरी और पैरवी के भरोसे नहीं रहते थे इसलिए उन्हें अपनी मेहनत और इमानदारी पर जितना मिला उसी में खुश थे। लेकिन चोरी और पैरवी वाले छात्र शिक्षामित्र बनने के मामले में इनपर भारी पड़े। अगर शिक्षामित्रों का चयन एक प्रवेश परीक्षा से हुआ होता तो शायद ज्यादातर योग्य छात्रों को मौका मिलता। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ और बिहार शिक्षा के मामले में पिछड़ता जा रहा है। अभी कुछ दिनों से शिक्षामित्रों को जांचा परखा जा रहा वो भी सिर्फ दिखावे के तौर पर। दरअसल शिक्षामित्रों को अब योग्यता परीक्षा देनी पड़ रही है जिसमें सभी पास होते हैं। बिहार के कई स्कूलों में शिक्षामित्र अपनी दबंगई के बल पर पुराने शिक्षकों को किनारे कर चुके हैं। बिहार के एक जिले में तो सरेआम नियमों की धज्जियां उड़ाकर कई जगहों पर शिक्षामित्र ही हेडमास्टर बने रहे। जबकि नियमानुसार वरिष्ठ शिक्षक के होते शिक्षामित्र हेडमास्टर नहीं बन सकता। ये मामला है बिहार के पूर्णियां जिले का। हालांकि बाद में कुछ लोगों के विरोध और शिकायत के बाद जिला शिक्षापदाधिकारी ने ये आदेश जारी किया कि कोई भी शिक्षा मित्र हेडमास्टर नहीं बन सकता और जो हैं उन्हें तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया। लेकिन इस पूरे प्रकरण में एक अहम बात ये रही कि शिक्षामित्र कागजी प्रक्रिया के तहत हेडमास्टर बने जो कि गैरकानूनी था। अब इसका जवाब कौन देगा कि करीब छह महीने तक ये गैरकानूनी नियुक्ति कैसे वैध रही। ये तो महज एक जिले के कुछ स्कूलों का हाल है। जब कम योग्य और पैरवी और चोरी के नंबरों वाले युवक शिक्षक की भूमिका निभाएंगे तो भला उन छात्रों का क्या होगा जो इनसे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। क्यों बिहार की सरकार ने शिक्षा नीति में इतना सुस्त रवैया अपनाया। क्या ये सच्चाई विकास कुमार के तथाकथित नाम से मशहूर नीतीश कुमार के जेहन में है। अगर नहीं तो क्यों नहीं है और अगर है तो नीतीश कुमार इसे सुधारने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं। अगर सिर्फ बेरोजगारी खत्म करने के लिए शिक्षा मित्रों की बहाली की गई तो ये दुर्भाग्यपूर्ण है। बेरोजगार युवकों को दूसरे तरीके से भी रोजगार मुहैया कराया जा सकता था। इसके लिए अलग से नीति बनाई जा सकती थी। मासूमों के भविष्य के साथ ये खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है?kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-49391771740744342042009-08-23T19:20:00.000-07:002009-08-23T19:31:46.433-07:00क्या बीबी ऐसे खुश होतीं हैं ?मेरी अभी शादी नहीं हुई है लेकिन होने वाली है। कुछ लोग शादी के नाम से डराते हैं तो कुछ इसे जिंदगी का सबसे बेहतरीन पल बताते हैं। मुझे नहीं पता सच क्या है। मेरे एक दोस्त जिनकी शादी के 13 साल हो गए उन्होंने अपने अनुभव बताए।<br /><u>दोस्त के 13 साल के अनुभवों का सार -</u><br />पतियों के लिए पत्नियों को खुश रखने के कुछ मंत्र .... इस मंत्र को फॉलो कर कोई भी अपनी पत्नी के आंखों का तारा बन सकता है ---<br /><u>मंत्र<br /></u>बिना बात के पत्नी की तारीफ करते रहो<br />बिना गलती के सॉरी बोलते रहो<br /><br /><u>तीसरा मंत्र (ये सबपर लागू नहीं होता)</u><br /><br />जितने रुपए मांगे निर्वाध रूप से देते रहो<br /><span class=""></span><br />मुझे नहीं पता उपरोक्त कथन में कितनी सच्चाई है। मैं आप सभी शादीशुदा विद्वजनों से सप्रेम निवेदन करता हूं कि अपने विचार जरूर प्रेषित करें।kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-43957513589643131872009-08-18T19:17:00.000-07:002009-08-20T18:56:27.469-07:00यमुना की दुश्मन ‘आस्था’<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeAFdIOo28wqU-aDKWcgQoMSVxZZkiLg6Gp9VjIc6CVv3wPGk-H0Gsr6brDWukpWlueDqmQkNrcA80dIM-GYXgJEPi2ntrtsSmhB6aX_2Prx6S6tWJSS0ADQ4O-e3uNIXzg7_yf1jgI9s/s1600-h/yamuna.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5371494128745235714" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 213px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjeAFdIOo28wqU-aDKWcgQoMSVxZZkiLg6Gp9VjIc6CVv3wPGk-H0Gsr6brDWukpWlueDqmQkNrcA80dIM-GYXgJEPi2ntrtsSmhB6aX_2Prx6S6tWJSS0ADQ4O-e3uNIXzg7_yf1jgI9s/s320/yamuna.jpg" border="0" /></a><br /><div>यमुना नदी आस्था का प्रतीक है और यही आस्था यमुना पर भारी है। किसी धर्म को निशाना बनाने की मंशा नहीं है लेकिन जो काफी दिनों से देखता आ रहा हूं उसे अब और नहीं दबा सकता। 85 नंबर की बस से आ रहा था। बस लक्ष्मीनगर से आईटीओ को जोड़ने वाली पुल से होकर गुजरती है। ये प्राइवेट बस नहीं थी। डीटीसी की लो फ्लोर बस थी। बस यमुना पुल पर एकाएक रुक गई। कोई कुछ नहीं समझ पाया। हर किसी को लगा कि बस कुछ खराबी आ गई है। मैं कंडक्टर के पास खड़ा था। कंडक्टर की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा था। तभी बस का ड्राइवर नीचे उतरा और पीछे से होते हुए सीधे यमुना के किनारे पहुंचा। यूं तो पुल पर लोहे का जाल है, ये जाल बीच बीच में तोड़ दी गई है। ड्राइवर के हाथ में एक पॉलीथीन थी। उसने उसे यमुना में फेंक दिया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। मेरे मुंह से अनायास ही निकला आस्था की गंदगी।<br />ये कोई पहली घटना नहीं है लक्ष्मीनगर और आईटीओ को जोड़ने वाली इस पुल पर दोपहर का नजारा तो कुछ और ही होता है। पुल पर छोटे छोटे बच्चे घूमते रहते हैं। लोग अपनी गाड़ी पुल पर रोकते हैं और बच्चों को कुछ रुपयों के साथ ‘आस्था’ की गंदगी पकड़ा देते हैं। वो गंदगी आस्था के नाम पर यमुना में फेंक दी जाती है। जो बच्चों को रुपये नहीं देना चाहते वो खुद ही गंदगी यमुना में प्रवाहित करते हैं। ‘आस्था’ की गंदगी बोले तो यमुना की दुश्मन ‘आस्था’।</div>kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-51532094709377590292009-07-11T11:08:00.000-07:002009-07-11T11:10:10.939-07:00जिम्मेदारी किसकी ?इस दुनिया में कोई घर ऐसा नहीं जहां लोग मरते नहीं हैं। आप उस क्षण को याद कीजिए जब आपके गांव में या आपके मुहल्ले में किसी की असमय मौत हो जाती है। परिजनों के चीत्कार से सारा माहौल गमगीन हो जाता है। पूरे गांव या मुहल्ले में लोग उदास हो जाते हैं। अब जरा अंदाजा लगाइए उस जगह का जहां एक के बाद एक 140 लोग तड़प तड़प कर मर गए। किसी का सुहाग उजड़ गया, किसी के सिर से बाप का साया उठ गया। चारो ओर बस चीत्कार ही चीत्कार। <br />अब सबसे बड़ा सवाल कि 140 मौतों के लिए जिम्मेदार कौन है ? मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, अहमदाबाद की पुलिस जिसकी नाक के नीचे अवैध शराब का धंधा चल रहा था, या फिर वो लोग जिन्हें शराब की बुरी लत थी ? उन सैंकड़ों मासूमों को कौन जवाब देगा, जिसे अब कभी बाप का प्यार नही मिलेगा?kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-15309534819983793582009-06-06T08:45:00.000-07:002009-06-06T08:48:11.203-07:00क्या मीरा कुमार दलित हैं?मीरा कुमार का स्पीकर चुना जाना खुशी की बात है। लेकिन लोकसभा में जिस तरीके से नेताओं ने मीरा कुमार को धन्यवाद दिया वह कई सवाल खड़े करती है। एक एक कर सभी प्रमुख सांसद सच्चाई से भटकते नजर आए। लगभग सभी ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में कहा कि आज एक दलित की बेटी लोकसभा की स्पीकर बनीं हैं। ये भारतीय लोकतंत्र के लिए गर्व की बात है। बात गर्व की जरूर है। लेकिन असली सवाल ये है कि मीरा कुमार दलित कैसे हैं ? क्या सिर्फ जाति के आधार पर किसी को दलित कहना करना जायज है। क्या सिर्फ इतना कहना काफी नहीं था कि एक महिला लोकसभा स्पीकर बनीं हैं। बात उस समय की करते हैं जब बाबू जगजीवन राम जिंदा थे। उन्हें दलितों के बीच काम करनेवाले प्रमुख नेताओं में गिना जाता है। लेकिन एक सच ये भी है कि जगजीवन राम ‘दलितों के बीच ब्रह्मण और ब्रह्मणों के बीच दलित थे”। हालांकि उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। <br />आज के संदर्भ में दलित शब्द की नई परिभाषा गढ़नी होगी। सिर्फ कास्ट को ध्यान में रखकर दलित की परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है इसके लिए क्लास को भी ध्यान में रखना ही होगा। उन लोगों को कैसे दलित कहा जा सकता है जो फाइव स्टार लाइफस्टाइल की कटेगरी में पहुंच गए हैं। हम मायावती को दलित कहते हैं, मीरा कुमार को दलित कहते हैं। आखिर क्यों। मायावती और मीरा कुमार किस तरह से दलित है। जिस वक्त जाति बनाई गई थी उस वक्त कर्म को ध्यान में रखा गया था मतलब साफ है कि क्लास को ध्यान में रखा गया था। गरीब क्लास और अमीर क्लास। बनिया क्लास और क्षत्रिय क्लास। ऋगवैदिक काल में लोगों को अपने कर्म यानि क्लास के हिसाब से जाति चुनने की पूरी छूट थी। वे जिस कर्म को अपनाते थे उसी के हिसाब से जाति इंगित होती थी। लेकिन अब समाज की सेवा करने वाले तथाकथित राजनेताओं ने जाति को वंशानुगत बना दिया है। कर्म से इसका कोई नाता रिश्ता नहीं रहा। जब दलितों को लाभ देने का मामला उठता है तो इसका फायदा ज्यादातर अमीर दलित ही उठाते हैं। बहुत कम ऐसे दलित हैं जिन्हें इसका लाभ मिलता है। इसे पढ़ने के बाद अपनी राय जरूर रखिए कि क्या आप मीरा कुमार को दलित मानते हैं? अगर हां तो कैसे?kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8053098590901620950.post-25194504939287677312009-04-22T11:30:00.000-07:002009-04-22T11:32:28.033-07:00राहत सामग्री का बंदरबांटयह लेख जनसत्ता(दैनिक अखबार) में प्रकाशित हो चुका है।<br /><br />नोएडा में श्री श्री रविशंकर ने ब्रह्मनाद का आयोजन कर एक मिसाल कायम की। कार्यक्रम का आयोजन बिहार में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए किया गया था। इस कार्यक्रम से पहले भी श्री श्री रविशंकर की ओर से बिहार में बाढ़ पीड़ितों को तमाम तरह की सहायता राशि बांटी गई। अब उनकी योजना अपना सबकुछ खो चुके लोगों को घर बनाकर देना है। रविशंकर जी की सहायता तो लोगों तक पहुंच रही है लेकिन सरकारी सहायता बड़ी मुश्किल से बाढ़ पीड़ितों की धधकती अंतड़ी तक पहुंच पा रही है। सरकारी राहत सामग्री दरअसल उन लोगों तक पहुंच रही है जो इसके असली हकदार नहीं हैं। गैर सरकारी आंकड़ों की मानें तो करीब एक लाख लोग बाढ़ की भेंट चढ़ गय़े। जो बचे उनका सबकुछ लुट चुका था। सहायता के लिए केन्द्र सरकार ने राज्य को अच्छी खासी रकम दी। लेकिन सबसे शर्मनाक बात तो ये है कि जो बाढ़ पीड़ित नहीं हैं उनके बीच भी सामग्री धड़ल्ले से बांटी जा रही है। इसके पीछे पूरा गणित फिट है। लोक सभा चुनाव आने वाला है ऐसे में छुटभैया नेता अपना जनाधार बढ़ाने के लिए अपने लोगों को राहत सामग्री पाने में पूरी मदद कर रहे हैं। लेकिन ये छुटभैया नेता भी फ्री में राहत सामग्री नहीं दिला रहे। एक प्रोसेस के तहत सारा खेल चल रहा है। दरअसल सरकारी राहत सामग्री गांवों में प्रखंड स्तर पर बांटी जाती है। राहत सामग्री पाने के उचित हकदार को ढूंढने के लिए एक समिति बनी हुई है। लेकिन ये समिति गांवों का दौरा करना मुनासिब नहीं समझती। इनका खेल बड़ा निराला है। छुटभैये नेता बाढ़ पीड़ितों की लिस्ट बनाकर लाते हैं और इस समिति के सामने पेश कर देते हैं। समिति के अपने नियम हैं जो उचित हकदार नहीं है उसे राहत सामग्री देने के रेट फिक्स कर दिये गये हैं। पूरे दो सौ रुपये देकर कोई भी अपने आपको आसानी से बाढ़ पीड़ित बना लेता हॆ। फिर खेल शुरू होता ब्लॉक प्रमुख और सरकारी अधिकारियों जहां इस लिस्ट को स्वीकृति मिल जाती है। समिति में पास किये गये लिस्टेड लोगों को जल्द ही 50 किलो गेंहूं, 50 किलो चावल और 250 रुपये मिल जाते हैं। अब यहां फिर एक खेल शुरू होता है। कुछ लोग राहत सामग्री अपने घर ले जाते हैं लेकिन ज्यादातर इसे बाजार में बेच देते हैं। चूंकि चावल बहुत अच्छे नहीं होते इसिलिए बाजार में इसका रेट ज्यादा नहीं है। हिसाब लगाने पर 50 किलो चावल 8 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 400 रुपये में और गेंहूं 10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से 500 रुपये में बिक जाता है। मतलब साफ है कि 900 रुपये अनाज के हुए और 250 रुपये कैश तो भला किसी को 200 रुपये देने में मलाल क्यों हो। हाथों हाथ फायदे का सौदा है सो लोग इसे एक स्कीम समझकर छुटभैये नेताओं की शरण में पहुंचकर अपने आपको बाढ़ पीड़ित घोषित करवा लिया। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं जो राहत सामग्री सबकुछ खो चुके लोगों के लिए भेजी गई उसका किस तरह से बंदरबांट हुआ है। अगर इसकी जांच हो एक बड़ा घोटाला सामने आ सकता है। एक ऐसा घोटाला जो जिसमें सबकी मिली भगत है। छुटभैये नेता से लेकर एक अधिकारी तक। जब ब्लॉक स्तर पर इस तरह का खेल चल रहा है तो कैसे भरोसा कर लें कि उपर के अधिकारियों को इसकी भनक नहीं होगी। बाढ़ पीड़ितों के नाम पर होने वाली इस करोड़ों की कमाई को पचाना महज कुछ अधिकारियों के वश की बात नहीं है। 2004 में भी बाढ़ पीड़ितों के नाम 11 करोड़ का घोटाला हुआ जिसमें पटना के पूर्व जिलाधिकारी गौतम गोस्वामी जो अपनी इमानदारी के लिए टाइम पत्रिका तक में जगह पाकर सुर्खियां बटोर चुके थे का नाम सामने आया था। गोस्वामी पर आरोप लगे थे कि उसने बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए एक कंपनी को बाढ़ पीड़ितों के लिए आबंटित 17 करोड़ में से 11 करोड़ रुपये दिलवाये। लेकिन बाद में पता चला कि वो कंपनी फर्जी थी और 11 करोड़ रुपये की राहत सामग्री बांटी ही नहीं गई। अब चार साल बाद जब बिहार में प्रलयंकारी बाढ़ आई तो घोटालेबाजों की बांछें खिल गई। एक बार फिर कमाने खाने का सुनहरा मौका जो मिलने वाला था। लेकिन इस बार घोटाले का स्वरूप थोड़ा बदला हुआ है। घोटाले की शुरुआत निचले स्तर से होते हुए उपर पहुंच रही है। अगर भविष्य में सरकार इसकी कोई जांच करवाती है तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आएंगे। शायद चाणक्य ने ऐसी ही स्थिति को देखकर लिखा था कि, “सरकारी धन का दुरुपयोग करना उसी तरह नामुमकिन है जिस तरह जीभ पर रखी हुई चीनी को न चखना।“ चाणक्य की इस लाइऩ से छोटे मोटे घोटाले की बू आती है लेकिन बाढ़ राहत सामग्री बांटने के नाम पर जो हुआ उससे तो ऐसा लगता है कि अधिकारी जीभ पर रखी पूरी चीनी ही गला देने की फिराक में हैं। अभी भी बिहार में अपना सबकुछ गंवा चुके हजारों लोग राहत सामग्री की आस लगाए बैठे हैं। आप अंदाजा लगा सकते हैं उस घड़ी का जब लोग अपने घरों में चैन से सोये हुए थे और एकाएक 20 फीट ऊंची लहर सबकुछ बहा ले गई। लोग पेड़ के पत्तों की तरह बह गये, मर गये। जो बच गये वो राहत सामग्री को तरस रहे हैं। बहुत कम लोग खुशकिस्मत रहे जिन्हें बेहतर तरीके से सरकारी मदद मिली ज्यादातर को स्वयंसेवी संस्थाओं से ही मदद मिली है। सरकारी राहत सामग्री बांटने का ये सच स्थानीय लोगों से छिपा नहीं है। अंदर ही अंदर इसकी गंध उपर तक पहुंच रही है तभी बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए उठे हाथों को सरकार पर भरोसा नहीं है। जो लोग बाढ़ पीड़ितों की मदद करना चाहते हैं वो सरकारी संस्थाओं के बजाय गैर सरकारी संस्था या फिर खास तौर पर समाजसेवियों द्वारा बनाये गये संस्था को ही फंड देना बेहतर समझते हैं। बाढ़ पीड़ितों की मदद करने वाले ये कतई नहीं चाहते कि उनकी भेजी राहत सामग्री किसी गैर जरूरतमंद से कुछ पैसे लेकर बांट दी जाए। <br />"' कौशल कुमार कमल"'kaushalhttp://www.blogger.com/profile/13963274252669443996noreply@blogger.com1